18 जुलाई 2011

आतंकी हमले के बाद घटिया सियासत

नई दिल्ली [अरविंद जयतिलक]। देशद्रोहियों और आतंकियों को खुश होना चाहिए कि उन्हें भारत में एक नया पैरोकार मिल गया है। पैरोकार भी ऐसा-वैसा नहीं है। काग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह जैसा है। वही दिग्विजय सिंह, जिन्हें युवराज राहुल गाधी का सबसे भरोसेमंद सेनापति और दस जनपथ की जुबान समझा जाता है। पर काग्रेस के इस सेनापति के दिल में मुंबई बम विस्फोट में मारे गए लोगों के प्रति तनिक भी संवेदना नहीं है। अन्यथा, वह लाशों पर सियासत करने का दुस्साहस नहीं दिखाते।
घटना में मारे गए लोगों की चिता अभी ठंडी भी नहीं हुई है कि दिग्विजय सिंह ने एक बार फिर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और हिंदू संगठनों को लेकर बयानबाजियां करना शुरू कर दिया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि मुंबई आतंकी घटना में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है।
उन्होंने यह भी दावा किया है कि उनके पास अन्य आतंकी गतिविधियों में संघ की संलिप्तता के सबूत हैं। विचित्र लगता है कि जिन जाच एजेंसियों को काफी मशक्कत के बाद भी अभी तक कोई ठोस सुराग हाथ नहीं लगा, उस घटना के लिए दिग्विजय सिंह आरएसएस और हिंदू संगठनों को किस बिना पर जिम्मेदार ठहरा रहे हैं?
पूछा जा सकता है कि अगर उनके पास कोई सबूत है तो वे क्यों नहीं जाच एजेंसियों को उपलब्ध करा देते हैं? बगैर किसी सबूत के राष्ट्रवादी संगठनों पर देशद्रोह जैसे आरोप जड़ना क्या राजनीतिक नीचता की हद नहीं है?
आखिर दिग्विजय सिंह को यह अधिकार किसने दे रखा है कि वे जब चाहें तब किसी भी संगठन को आतंकी गतिविधियों में संलिप्त बता दें और आतंकी गतिविधियों में लिप्त लोगों की पैरोकारी करते फिरें।
सच तो यह है कि दिग्विजय सिंह के पास संघ और अन्य हिंदू संगठनों के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। पर वे जानबूझकर राजनीतिक वितंडा खड़ा करने की कोशिश इसलिए कर रहे हैं कि सरकार की नाकामियों पर परदा गिरा रहे। दिग्विजय सिंह का शिगूफा और अघोरतम आचरण उनके दिमागी दिवालियेपन को उजागर करने के लिए काफी है। पर हैरत होती है कि काग्रेस पार्टी अपने इस बड़बोले दरबारी के बुद्धि-चातुर्य पर लट्टू हुई जा रही है।
याद होगा पिछले दिनों ही दिग्विजय सिंह ने वाक्जुगाली की थी कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शह पर होने वाली कथित आतंकी गतिविधियों के बारे में उन्हें अपनी पार्टी को समझाने में तीन से चार साल लग गए। तो क्या अब यह माना जाए कि काग्रेस पार्टी अपने इस नए पाखंडी गुरु की राजनीतिक शिक्षा पर अमल करना शुरू कर दिया है?
क्या दिग्विजय की तरह काग्रेस पार्टी भी इस निष्कर्ष पर पहुंच चुकी है कि हर आतंकी घटना के लिए संघ और हिंदू संगठन ही जिम्मेदार हैं? हिंदू संगठनों पर जिस तरह दिग्विजय सिंह हमलावर हैं और काग्रेस पार्टी मौन साधे हुए है, उसे देखकर तो कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। 13/7 की आतंकी घटना पर दिग्विजय सिंह के कुत्सित बयान पर काग्रेस का यह कहना कि दिग्विजय सिंह कुछ भी गलत नहीं कह रहे हैं, आखिर क्या प्रतिध्वनित करता है?
मतलब साफ है कि दिग्विजय सिंह और काग्रेस दोनों की बुनियादी सोच आतंकवाद पर एक ही है, लेकिन काग्रेस और दिग्विजय सिंह इस सवाल से नहीं बच सकते हैं कि जब जाच एजेंसिया किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची हैं तो ऐसे में दिग्विजय सिंह संघ और हिंदूवादी संगठनों पर हमला बोलकर आखिर किसकी मदद कर रहे हैं?
कहीं ऐसा तो नहीं कि काग्रेस पार्टी दिग्विजय सिंह के मार्फत अनर्गल बयान दिलवाकर जाच एजेंसियों को गुमराह करने की कोशिश कर रही है? इस संभावना से इसलिए इनकार नहीं किया जा सकता कि सुप्रीम कोर्ट से फासी की सजा पा चुका संसद का हमलावर अफजल गुरु और 26/11 के आरोपी अजमल कसाब आज भी सरकार के संरक्षण में मौज काट रहे हैं।
तो क्या दिग्विजय सिंह इसी तर्ज पर 13/7 के आरोपियों को भी बचाकर वोट हड़पने की युक्ति भिड़ा रहे हैं? इस बात की निष्पक्ष जाच होनी ही चाहिए कि आखिर दिग्विजय सिंह किन लोगों के हाथों में खेल रहे है? पिछले दिनों आतंकी घटनाओं में संलिप्त बताकर गिरफ्तार की गई प्रज्ञा सिंह ने जोर देकर कहा था कि देश में होने वाली हर आतंकी घटनाओं में दिग्विजय सिंह का हाथ रहता है और वह आतंकियों से मिले हुए हैं।
प्रज्ञा सिंह की इस टिप्पणी पर भले ही देश ने ध्यान नहीं दिया, लेकिन दिग्विजय सिंह के खुराफाती दिमाग के कमाल को देखते हुए साध्वी प्रज्ञा सिंह के खुलासे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इस बात से कतई संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता है कि दिग्विजय सिंह संघ और हिंदू संगठनों पर इसलिए हमला बोल रहे हैं कि एक खास समुदाय के लोगों को अपने पाले में खड़ा करना चाहते हैं। यह ओछी हरकत दिग्विजय सिंह के राजनीतिक उद्देश्य का एक छोटा पड़ाव हो सकता है, लेकिन चरम लक्ष्य बिल्कुल ही नहीं। दिग्विजय सिंह का उदेश्य इससे भी ज्यादा घातक और अमानवीय है।
अक्सर देखा जाता है कि जब भी देश में कोई बड़ा आतंकी हमला होता है दिग्विजय सिंह की सक्रियता अचानक बढ़ जाती है। जाच एजेंसिया किसी निष्कर्ष पर पहुंचें, इससे पहले ही दिग्विजय सिंह संघ और हिंदू संगठनों को बदनाम करना शुरू कर देते हैं। ऐसे में उनकी राष्ट्रभक्ति को लेकर स्वत: संदेह उत्पन होने लगता है। वे संवैधानिक संस्थाओं में भी संघ विचारधारा से जुड़े लोगों की तथाकथित उपस्थिति को लेकर संदेह जताते देखे जाते हैं।
दिग्विजय सिंह न तो केंद्र सरकार में मंत्री हैं और न ही जाच एजेंसिया ही उनके अधीन काम करती हैं। फिर भी वे आतंकी घटनाओं के निष्कर्ष की भविष्यवाणी कैसे कर देते हैं, यह बात समझ से परे लगती है? क्या भारत सरकार ने उन्हें संविधानेत्तर शक्तिया दे रखी हैं या वे देश के जाने-माने जासूस हैं?
अगर मनमोहन सरकार और दस जनपथ अपने सेनापति की इस देशतोड़क बयानबाजी पर लगाम नहीं कसती है तो मानने में कोई हर्ज नहीं कि वे भी इस खतरनाक साजिश में परोक्ष रूप से शामिल हैं। ऐसे में मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी अगर आरोप जड़ती है कि दिग्विजय सिंह सोनिया और राहुल की सहमति से विष उगल रहे हैं तो इसे अनुचित कैसे कहा जा सकता है?
मौन होना स्वीकारोक्ति का ही दूसरा नाम है। सरकार और दस जनपथ दोनों ही दिग्विजयी मौन साध रखे हैं। दुनिया के सबसे शातिर आतंकी ओसामा बिन लादेन के अंतिम संस्कार को लेकर दिग्विजय सिंह चिंता व्यक्त करते हैं। अपनी छाती धुनते हैं, पर काग्रेस को लज्जा नहीं आती है।
दिग्विजय सिंह बाबा रामदेव को 'महाठग' कहते हैं। काग्रेस खुश होती है। दिल्ली के बटला हाउस काड पर दिग्विजय सिंह सवाल दागते हैं और इंस्पेक्टर एससी शर्मा को खलनायक सिद्ध करने की कोशिश करते हैं, लेकिन काग्रेस को शर्मिदगी महसूस नहीं होती है। समस्त राजनीतिक मर्यादाओं को तोड़ते हुए दिग्विजय सिंह देश की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा को नचनिया पार्टी तक कह जाते हैं, पर काग्रेस अपने सेनापति की बाह नहीं मरोड़ती है।
दिग्विजय सिंह सियासी पुण्य लाभ के लिए आतंकियों की दहलीज पर नाक रगड़ते देखे जाते हैं, पर देशभक्ति का राग अलापने वाली काग्रेस शर्म से डूब नहीं मरती है, बल्कि उसका सीना गर्व से उतान हो जाता है।
जिस कॉमनवेल्थ गेम्स के महा भ्रष्टाचारी सुरेश कलमाड़ी को जेल भेजकर काग्रेस भ्रष्टाचार के खिलाफ ताल ठोंकती है, उसी को दिग्विजय सिंह बेगुनाह बताते हैं। शहीदों की विधवाओं के लिए आवंटित आदर्श हाउसिंग सोसायटी की जमीन को अपने सगे-संबंधियों में वितरित कर अपनी गद्दी गंवा चुके अशोक चव्हाण भी दिग्विजय सिंह की निगाह में पाक-साफ हैं। पर वे 26/11 के आतंकी हमले में शहीद हेमंत करकरे की शहादत पर सवाल खड़ा करने से बाज नहीं आते हैं।
सच तो यह है कि आतंकवाद पर दिग्विजय सिंह और कांग्रेस का समवेत स्वर राष्ट्रवादी मिजाज के लोगों के मनोबल को तोड़ने वाला और देश को लहुलुहान करने वाले आतंकियों की पैरोकारी वाला है। देश के लोगों को आतंकियों के इन नए पैरोकारों से सावधान ही रहना होगा।
वोट बैंक के लिए फिसलती जीभ
राजीव रंजन तिवारी। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में 13 जुलाई को हुए सीरियल ब्लास्ट और फिर मौत, भय, दहशत और चीख-पुकार को शायद ही कोई भूले, लेकिन अफसोस कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतात्रिक देश भारत के कथित पहरूओं की बेलगाम जुबान ने दुनियाभर में यह पैगाम दे दिया है कि यहा के नेता अपने 'वोट बैंक' के लिए किसी भी आतंकी पर कार्रवाई नहीं होने देंगे।
बेलगाम जुबान वाले नेताओं के आत्मविश्वास भरे अंदाज से लगता है कि उन्हें इस बात का आभास है कि इस वारदात को किस जाति, बिरादरी और कौम ने अंजाम दिया होगा।
शायद यही वजह है कि सब कुछ जानते-समझते हुए भी नेताओं की बयानबाजी जारी है। दिलचस्प यह है कि हादसे के दिन से ही सत्ताधारी और गैरसत्ताधारी नेताओं के जिस तरह के वक्तव्य आ रहे हैं, उससे इसी बात का डर है कि मामले की जाच में जुटी एजेंसियों की कार्यशैली प्रभावित न हो जाए, क्योंकि भारतीय एजेंसिया भी सरकार और सत्तासीन नेताओं के इशारे पर ही चला करती हैं, जैसा कि अक्सर आरोप लगते रहते हैं।
देश में बेलगाम जुबान के प्रतीक के रूप ख्याति हासिल करते जा रहे काग्रेस के बड़े नेता दिग्विजय सिंह ने मुंबई ब्लास्ट पर यह कहकर नई बहस छेड़ दी है कि इन धमाकों में हिंदू संगठनों के हाथ होने से इनकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने देश में पहले हुए धमाकों की जाच के दायरे में भाजपा को भी लाने की माग कर डाली। हालाकि उन्होंने यह भी कहा कि हमें एनआइए और महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधक दस्ते [एटीएस] को अपना काम करने देना चाहिए।
दरअसल, दिग्विजय ने अपने बयान की पुष्टि के लिए कहा कि अगर एनआइए 2007 में हुई आरएसएस नेता सुनील जोशी की हत्या की जाच करे तो इस हत्याकाड से कुछ भाजपा नेताओं के नाम उजागर हो सकते हैं। उन्होंने पूर्व में हुए कुछ बम धमाकों के लिए आरएसएस को कठघरे में खड़ा किया। इसके लिए उन्होंने यहा तक कहा कि आतंकी गतिविधियों में आरएसएस के शामिल होने के मुद्दे पर वह कोर्ट में भी हाजिर हो सकते हैं।
इस तरह साफ हो जाता है कि दिग्विजय सिंह देश की एक कौम के 'वोटबैंक' की राजनीति कर रहे हैं, जो इस दुख की घड़ी में अच्छा नहीं लगता।
चूंकि काग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह 'वोटबैंक' की राजनीति कर रहे हैं और वे अपने पक्ष में एक विशेष कौम को जोड़ने की रणनीति बना रहे हैं तो इस पर भाजपा कैसे चुप बैठ सकती है। स्वाभाविक है, उसे भी चुनाव लड़ना है। वह काग्रेस की प्रतिद्वंद्वी पार्टी है। इसलिए भाजपा का दिग्विजय के उलट बयान देना लाजिमी है। सो, भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन ने कह डाला कि दिग्विजय सिंह का बयान मुंबई धमाकों की जाच को भटकाने की चाल का हिस्सा है।
उन्होंने कहा कि मुंबई ब्लास्ट के बाद दिग्विजय सिंह लाशों पर राजनीति कर रहे हैं। शाहनवाज ने कहा कि जब देश के गृहमंत्री और जाच एजेंसिया नहीं बता पा रही हैं कि इन हमलों के पीछे किसका हाथ है तो फिर दिग्विजय सिंह किन सूत्रों के आधार पर इस तरह के बयान दे रहे हैं। दिग्विजय को जुबानी डायरिया हो गया है।
बीजेपी ने तो यहां तक कह दिया कि लगता है कि दिग्विजय के शरीर में 'ओसामा जी' की आत्मा घुस गई है। बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि केंद्र सरकार की अगुवाई करने वाले काग्रेसी नेता आतंकियों को बचाने और राष्ट्रवादियों पर आरोप मढ़ने में लगे हैं।
खैर, बड़बोलेपन में दिग्विजय का जवाब नहीं है। वे इससे पहले भी कई बार उल्टे-सीधे बयान देकर सुर्खियों में रह चुके हैं, लेकिन यदि उनके बयानों को गंभीरता से लिया जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि वे हर हाल में देश के एक कौम के 'वोटबैंक' को काग्रेस के लिए सुरक्षित कर लेना चाहते हैं। दूसरी तरफ राज ठाकरे और मायावती भी अपनी-अपनी ओर से अशोभनीय टिप्पणियां कर रहे हैं।
उधर, काग्रेस के महासचिव राहुल गाधी ने मुंबई में हुए ब्लास्ट की तुलना ईरान, ईराक या फिर अफगानिस्तान में हो रही आतंकी घटनाओं से कर दी।
अफसोस की बात है कि इस संकट के दौर में देश के नेता वोटबैंक की राजनीति कर रहे हैं। कम से कम इस वक्त तो पीड़ितों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई में सरकार की मदद करनी चाहिए, लेकिन देश के नेता जो कर और कह रहे हैं, वह हास्यास्पद नहीं, बल्कि रोने लायक है। अभी आगे-आगे देखिए होता है क्या!
Source: Dainik Jagran

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