15 नवंबर 2012

बाला साहब के प्रति उत्तर भारतीयों का विषवमन नाहक!

बाला साहेब ठाकरे की बीमारी की खबर के साथ ही हमारे कुछ जागरुक उत्तर भारतीय मसीहाओ ने बाला साहब को कोसना और अनर्गल लिखना शुरू कर दिया है। इसमे से से अधिकाँश लोग हिन्दू समाज से हैं और जो सेकुलर नेताओं व मीडिया द्वारा दिग्भ्रमित हैं।
बात जनवरी 2010 की है। मुम्बई के अंधेरी पूर्व में साकीनाका इलाके में एक शिवप्रकाश दुबे नामक उत्तर भारतीय के बेटे प्रवेश दुबे के अपनी कुलदेवी माता विन्ध्य वासिनी की मन्नत के लिए रखे गए बाल उसकी स्कूल के ईसाई फादर ने जबरन काट दिए।

इस इलाके में बड़े-बड़े उत्तर भारतीय नेता है - कोंग्रेसी मंत्री नसीम खान यहाँ से एमेले हैं, बगल में कुर्ला से कृपाशंकर सिंह एमेले हैं। संजय निरुपम का ये कार्य क्षेत्र है। लेकिन किसी ने दुबे जी को सपोर्ट नहीं किया नसीम खान का भाई तो फादर का रहनुमा बनाकर दुबे जी को धमकाने लगा कि हल्ला मत करो वरना स्कूल से निकाल देंगे।  कोंग्रेस सरकार के दबाव में पुलिस भी स्कूल के फादर के पक्ष में खडी थी और प्राथमिकी दर्ज करने के लिए मना कर दिया।

तब बजरंग दल मुम्बई के प्रमुख श्री उमेश राणे अपने 100 समर्थको और 50 शिवसैनिक (सभी महाराष्ट्रीयन) स्कूल में गए और फादर की भद बिगाड़ी। और पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। मजे की बात है एक उत्तर भारतीय पर जुल्म हुआ तो उसके  हक़ में लड़नेवाले सभी महाराष्ट्रीयन थे।

दूसरी तरह उत्तर भारतीयों के सारे मसीहा- संजय निरुपम, कृपाशंकर, नसीम खान, अबू आजमी आदि बिल में जा घुसे थे।

यह खबर अंगरेजी अखबार मुम्बई मिरर और डीएनए में भी छपी थी। मिम्बी मिरर का लिंक यहाँ दे रहा हूँ, जिसे अपनी पुष्टि के लिए आप पढ़ सकते हैं। टीवी चैनलों पे भी उमेश राने आये थे।
ऐसे असंख्य वाकये हैं। फिर भी हम उत्तर भारतीय मराठी मानूष के साथ प्रेम से नहीं रह पाए तो गलती हमारी है। किसी राज या बालासाहेब ठाकरे की नहीं।
दरअसल हमें ये सत्य स्वीकार करना होगा कि मुम्बई के अधिकाँश अपराधो में उत्तर भारतीय मुस्लिम (खासकर वहाबी) शामिल होते हैं। लेकिन ठीकरा फूटता है सभी उत्तर भारतीयों पर। ऐसे में लालू, नीतीश, अबू, अमर सिंह, रौल विंची और मुलायम, कृपाशंकर, निरुपम के बयान आग में घी डालने का काम करते हैं।
और मुम्बई में यूपी के यादव के सामने मराठी जाधव, और पांडे के सामने देशपांडे खडा हो जाता है। जब की पता करो तो दोनों के रगों में एक ही डीएनए होगा!!
सोनिया के खिलाफ राष्ट्रवाद का नारा लगाकर राष्ट्रवादी कोंग्रेस पार्टी बनाने वाले शरद पवार का 'राष्ट्रवाद' से कितना वास्ता है?
ठीक वैसे ही वक्त के साथ मराठावाद का नारा भी हवा के साथ गुम होने वाला है। हाँ हमें मुम्बई में अपनी विश्वसनीयता कायम करनी होगी।
दूसरी तरफ हमें समझना होगा कि ---हमारे वोटो पे जितने वाले गोवा में कोंग्रेस का मुख्यमंत्री दिगंबर कामत उत्तर भारतीयों को भिखारी कहता है। महाराष्ट्र का शिक्षा मंत्री सुरेश शेट्टी हमें सिर्फ ठेला वाला, केला वाला कहता है तो कोई तकलीफ नहीं होती तो ठाकरे से क्यों इतनी खुन्नस?? क्यों हम निरुपम, अबू आजमी कृपाशंकर, लालू अमर सिंह और सेकुलर मीडिया जैसे दलालों के बहकावे में आकर मुम्बई में अपनी विश्वसनीयता गिराने पे तुले हैं।
मुम्बई दंगो में सरे आम नंगा नाच करनेवाले और दाउद इब्राहिम के करीबी अबू आजमी आये दिन मुम्बई में पोस्टर चिपकाता है कि -''मुम्बई हमारी आपकी नहीं किसी के बाप की!'' तो किस सद्भाव की अपेक्षा रखे? किसी जमाने में मुम्बई की गलियों में झोला लेकर काम मांगते फिरते उत्तर भारतीय संजय निरुपम को बाला साहब ने सामना का सम्पादक बनाकर राज्य सभा में भेजा. लेकिन बदले में निरुपम ने बाला साहेब को धोखा दिया। इस तरह हम कैसी विश्वसनीयता कायम करना चाहते हैं??

याद रखिये बाला साहब न होते तो मुम्बई की हालत भी कश्मीर, केरल, असम और मुल्लायम राज जैसी होती।

http://www.mumbaimirror.com/article/2/2010010620100106015843840aee07258/Principal-snips-off-student%E2%80%99s-hair-parents-lodge-FIR.html?pageno=1

20 नवंबर 2011

ईसाई एनजीओ की एक और करतूत..



Rogue NGO separates mother from baby for 9 days
Yogesh Pawar Mumbai, DNA
Two-year-old child languishes in remand home as faith-based NGOs in Sangli run amok in the name of curbing flesh trade, target a family of devadasis

A family of devadasis that is trying to lead a life of dignity making quilts and papad; an overzealous, Christian anti-trafficking NGO desperate to justify its funding with some 'results'; and a bunch of local cops in awe of white skin. Put them all together and you have the absurd tragedy of a two-year-old baby brutally torn away from her mother and kept in a children's remand home for nine days, probably traumatising the infant for life, and leaving the mother in shock.
On November 4, 2011, in the Gokulnagar neighbourhood of Sangli town, about 350km south of Mumbai, a group of policemen accompanied by an identified 'gora' barged into the home of Kasturi Talagedi, 59, and took away her two-year-old granddaughter, Gaurauva, and her 21-year-old speech-impaired niece, Savitri. They had already made up their minds that Savitri was a sex worker and that Gaurauva was her illegitimate daughter. This was their idea of an anti-trafficking operation. By the time Gaurauva's mother and Kasturi's daughter, Geeta, 26, came to know what was going on, it was too late — her baby was gone.
Kasturi, who lives next door to Geeta. recounts the nightmare. "My granddaughter Gaurauva was playing with my niece Savitri when the police came with a gora. He pointed at my niece, and without asking me anything, the police dragged her out of the house. They said she was a minor and I'd forced her into prostitution." Kasturi's pleas that her niece was 21 fell on deaf ears. "They took the baby too, insisting she was Savitri's daughter."
While a speech-impaired Savitri could only whimper, Geeta, who heard the commotion, rushed out of her house begging for her baby. "Seeing a crowd gather, they let me into the police vehicle, but I was pushed out midway and they sped off," says Geeta.
Kasturi and and Geeta then approached Sangram, an NGO which works with vulnerable women in the area of HIV/AIDS prevention/treatment. Sangram's Meena Seshu speaks bitterly about the insensitivity of the police.

They got a sign language expert from Miraj town, who insisted that Gaurauva was Savitri's daughter. The police kept parroting this, though a medical examination established that Savitri had never ever conceived," she says.
Only when they took the matter to the local court did the police relent, nine days later. "Because of all this, the baby was deprived of mother's milk. I could feel her ribs when they released her," says Geeta.
When contacted by DNA, Sangli Additional Superintendent of Police Digambar Pradhan, who conducted the raid, admitted that an American working with an international anti-trafficking group had accompanied the police team, but refused to divulge the name of either the American or his organisation. "It is our duty to respond to any complaint of trafficking in minors and take action," he said.
But how can the police just take away any random woman's baby based on some NGO's complaint, without any evidence of trafficking? Admitting to the goof-up, Pradhan says, "We were very vigilant because we didn't want
the child to be with the wrong person."
Seshu points out that many faith-based American organisations that are flush with donations obtained in the name of anti-trafficking work are sending workers to interior towns like Sangli. "These NGOs and their volunteers suffer from 'targets' and get ultra-aggressive in their approach," she says. According to Seshu, the number of such foreigners in Sangli (Maharashtra home minister RR Patil's home district) has risen sharply in the last five years. "I'd like to know why they're here. Will I be allowed to do anything similar in the US when I'm there on a tourist visa?" she asks. "Instead of asking these questions, our police only seem too keen to hobnob with the goras."
Full Story can be found at DNA

03 नवंबर 2011

नग्न तस्वीर का डर दिखा तांत्रिक करता रहा दुष्कर्म

समाज और जनसेवा में अग्रणी श्री श्री रविशंकर और योगी रामदेव से संत परंपरा का सवाल करनेवाले और उन्हे व्यापारी, ठग कहनेवाले  कॉंग्रेस नेता दिगभ्रमित सिंह इस मुल्ले (सॉरी महाशय मुल्लाजी) के बारे मे क्या कहेंगे??
पूरी खबर जागरण मे छपी है.। यहाँ पढ़ें....

Nov 02, 11:22pm
पश्चिमी दिल्ली, जागरण संवाददाता : ख्याला थाना पुलिस ने एक ढोंगी तांत्रिक सनाउल्लाह (33) को गिरफ्तार किया है। उसने मार्च में महिला की नंगी तस्वीर खींचकर उसे सार्वजनिक करने का भय दिखा कर उससे दुष्कर्म किया। ढोगीं तांत्रिक ने महिला का फ्लैट अपनी पत्‍‌नी के नाम करा लिया था। इसके अलावा लाखों रुपये भी अपने खाते में डलवा लिए थे।
अतिरिक्त पुलिस आयुक्त वी. रंगनाथन ने बताया कि 31 अक्टूबर को संत नगर की रहने वाली एक महिला ने ख्याला थाना पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि उसके पति ट्रांसपोर्ट का कारोबार करते हैं, लेकिन कुछ महीनों से व्यापार में घाटा हो रहा था। इसलिए उसने ख्याला सी ब्लॉक स्थित एक तांत्रिक से संपर्क किया। तांत्रिक ने पांच हजार रुपये लिए और अगले दिन आने की बात कही। 24 मार्च को महिला तांत्रिक के पास पहुंची, तो उसको पेय पदार्थ में नशीला पदार्थ मिला कर पिलाया गया। जब उसे होश आया, तो उसके बदन पर कपड़े नहीं थे। उसके साथ दुष्कर्म किया गया था। उसने तांत्रिक से पूछा, तो तांत्रिक ने कहा कि उसकी नंगी तस्वीर बना ली गई है। अगर उसने किसी को बताया, तो वह तस्वीर को सार्वजनिक कर देगा। इसके बाद तांत्रिक महिला के साथ लगातार दुष्कर्म करता रहा। साथ ही धमकी देकर उत्तम नगर स्थित महिला के फ्लैट को ढोंगी तांत्रिक ने अपनी पत्‍‌नी जमीला खातून के नाम करा लिया। महिला के खाते में मौजूद 12 लाख रुपये भी अपने खाते में डलवा लिया।
महिला की शिकायत के आधार पर पुलिस ने पीड़ित महिला की मेडिकल जांच कराई। जहां जांच के दौरान दुष्कर्म की पुष्टि हुई। पुलिस ने मामला दर्ज कर मंगलवार को उत्तम नगर इलाके से सनाउल्लाह को गिरफ्तार कर लिया। पूछताछ में सनाउल्लाह ने अपराध को स्वीकार कर लिया

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/delhi/4_3_8434089.html

20 अक्तूबर 2011

एनजीओ के धंधे के फंडे!

भारत में समाज सेवा के नाम पे चल रहे कई एनजीओ समाज सेवा को ताक में रखकर राजनीति करने में लिप्त हैं. यही नहीं वह अपने फायदे के चक्कर में किसी ख़ास समुदायों /विचारों का समर्थन करते हुए देशा विरोधी हरकते करते हैं. अगर उन्हें किसी तरह रोक लिया जाए तो मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देकर हल्ला मचाते हैं. पेश है देश के ऐसे चंद गद्दार एनजीओ की  असलियत..
हाल ही में मेघा पाटकर और संदीप पांडे ने कश्मीर में सेना के खिलाफ जहर उगलते हुए AFSPA एक्ट को हटाने के लिए नौटंकी शुरू की है. उनका मकसद साफ़ है. देश के लिए कुर्बानी देनेवाली भारतीय सेना को विलेन के रूप बदनाम करो, उसे कश्मीर से हटाओ और वहा बचे हिन्दूजन को क्रूर जेहादी राक्षसों के रहमो-करम पर छोड़ दो...!! और अंतत: कश्मीर को पाकिस्तानी ताकतों हवाले कर दो. कोंग्रेस-कम्युनिस्ट सहित देश के कई सेकुलर भी इसी तरह सेना हटाने की बाते समय-समय पर करते रहते हैं. आप समझ सकते हैं कि वोट बैंक की राजनीति करनेवाले सेकुलर दलों और फईवादी एनजीओ के पीछे कौन है??

1)अग्निवेश ने बाल श्रम पर 10 हजार का सर्वे (फाइलों मे) करके दिल्ली की कॉंग्रेस सरकार से लाखो रुपये कमा लिए हैं। अन्ना आंदोलन के दूसरे चरण के दौरान ईस बात का अखबारो मे भी खुलासा हुआ था।
2) शबनम हाशमी ने गुजरात चुनावो से पहले बकायदा कॉंग्रेस से लाखो रुपये लेकर नरेंद्र मोदी और हिंदुओं के खिलाफ जहरीला अभियायान छेड़ा था।
3) मध्यप्रदेश मे अपने शासन के दौरान DIRTY सिंह ने सरकारी घाटे का हवाला देकर अखबारो को विज्ञापन देना बंद कर दिया था। लेकिन उसे दौरान तीस्ता सेटलवाद की पत्रिका को लाखो के विज्ञापन देकर उसके वारे-न्यारे किए। यह रपट नवभारत टाइम्स मे अरुण दीक्षित ने दी थी। बाद मे यही तीस्ता नरेंद्र मोदी के खिलाफ कॉंग्रेस के लिए बहुत 'काम' आई।
4) अरुणा राय ने राजस्थान मे कई सरकारी अफसरो को ब्लैकमेल किया और पैसा नही देने पर उन्हे आरटीआई के जरिए फंसाया है।
5) मल्लिका साराभाई की दर्पण एकेडेमी ने कॉंग्रेस की मेहरबानी से दिल्ली दूरदर्शन से कई प्रोजेक्ट मोटे दाम पर गटक लिए हैं। यह पार्ट टाइम कबूतर बाजी भी करती हैं।
6) हाल ही मे मुंबई के मिशनरी कॉलेज सेंट जेवीयर्स ने बाकायदा अरुण परेरा और विनायक सेन जैसे नक्सलवादियो को बुलाकर अपने छात्रो मे 'मानवाधिकार' का 'ज्ञान' बांटा। अब सेंट ज़ेवियर के छात्रो पर अरुण परेरा की रिहाई के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाने का दबाव बना रहे हैं। (चर्च+नक्सल)।
7) यही नही कराई जैसे संगठनो ने भी नरेन्द्र मोदी के खिलाफ काफी जहर उगला था।
8) पूर्व चुनाव आयुक्त नवीन चावला का जयपुर राजस्थान मे एनजीओ है। जिसमे कई कोंग्रेसी नेताओ ने मोटा 'चन्दा' दिया था। बदले मे चावला ने ईवीएम मशीनों मे गड़बड़ी करकी यूपीए-2 मे अपना योगदान दिया।
9) वर्ल्ड विजन नामक चर्च का एनजीओ बच्चो के नाम पे अकूत चन्दा एकत्र कर रहा है। और धर्माणतरण पर खर्च कर रहा है।
10) कानीमोई और तमिलनाडु के एक फादर व उसके एनजीओ के रिश्ते से तो आप वाकिफ ही हैं। 


इन एनजीओ को सिर्फ गुलाम नबी फ़ाई से ही नही बल्कि चर्च से भी अकूत पैसा मिलता है। एनजीओ-चर्च-कॉंग्रेस-नक्सल का गठजोड़ भयंकर किस्म का है। ये लोग आम दलितो को शेष हिंदुओं के खिलाफ भड़का कर मिशनरियो के लिए धर्माणतरण की जमीन तैयार करते हैं।

इसलिए अपना तो एक ही नियम है कि ऐसे किसी भी देशद्रोही एनजीओ को मदद मत करो। समाज के लिए कुछ करना ही है तो 'सेवा भारती' या संघ प्रेरित किसी एनजीओ को आर्थिक-मानसिक-शारीरिक मदद करो। 

14 अक्तूबर 2011

प्रशांत की 'लात' पे हमारी 'बात' !

पहली बात-
माना कि प्रशांत भूषण के साथ लात-घूंसो का बर्ताव हुआ वह निंदनीय है लेकिन--
क्या ये 'घूंसावादी' युवक उन 'बंदूकवादी' जेहादियो से ज्यादा हिंसक हैं , जिनकी 'फ़ईवादी' प्रशांत भूषण पैरवी करते हैं??
दूसरी बात-
यह हमला अन्ना टीम के प्रशांत भूषण पर नही बल्कि 'पीयूसीएल' नामक देशद्रोही कथित मानवाधिकार वादी संगठन के पदाधिकारी प्रशांत भूषण पर हुआ है। इसलिए टीम अन्ना को बौखलाने की जरूरत नही है।
तीसरी बात--
क्या प्रशांत भूषण उन लाखो काश्मिरी हिंदुओं से माफी मांगेंगे, जिनकी धरती वो पाकिस्तान को सौंपने के लिए बेताब हैं। क्या वह भारतीय सेना और पुलिस बल से माफी मांगेंगे, जिन पर वह कश्मीर में जुल्म करने के आरोप लगाते हैं.
चौथी बात--
प्रशांत भूषण और टीम अन्ना के अन्य मेंबरान को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए जन समर्थन मिला था, कश्मीर पर बकने के लिए नही!!
पाँचवी बात--
अभिव्यक्ति की आजादी भूषण, अरुंधती और गिलानी जैसे गद्दारो को है तो देशभक्त सुब्रमनियम स्वामी के लिए क्यो नही?? जिनके एक लेख लिखने पर कॉंग्रेस सरकार के इशारो पे दिल्ली पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज कर दी। उनके घर पे गुंडो ने हमले किए। और उनकी तरफदारी के लिए कोई भी बुद्धिजीवी सामने नही आया। बिकाऊ मीडिया तो खबर देने को भी तैयार नही है। जबकि दिल्ली मे सरकार की नाक के नीचे देशविरोधी बकवास करने के बावजूद गिलानी, अरुंधती आदि के खिलाफ कोई कार्रवाई नही की गई।
छठी बात--
क्या प्रशांत भूषण पर लात-घूंसे बरसानेवाले युवाओं को पैदा होने में खुद प्रशांत भूषण जैसे लोग, आतंकवादियों की तरफदारी करनेवाले कथित मानवाधिकारवादी, एकतरफा तोता रटंत करनेवाली मीडिया जिम्मेदार नहीं है? क्या कोंग्रेस- कम्युनिस्ट, लालू-मुलायम, पासवान-माया जैसी तुष्टिकरण करने वाली सेकुलर राजनीति नहीं है??

लिहाजा हम तो यही कहेंगे, की प्रशांत के साथ अशांत युवको ने जो किया वो गलत है, लेकिन इन युवाओं को अशांत करने के लिए प्रशांत ने जो पाकपरस्त बयान दिया वो इससे भी ज्यादा गलत था.


19 सितंबर 2011

मल्लिका-ए-कॉंग्रेस

मल्लिका साराभाई भी तीस्ता जावेद सेतलवाद और हर्ष मंदार जैसे लोगो मे हैं जिसने पाकिस्तानी गुलाम नबी फ़ाई से भारी धन पाकर हिंदूजन व हिन्दू संगठनो को बदनाम करने की सुपारी ले रखी है।
कॉंग्रेस राज मे खुद मल्लिका साराभाई ने दिल्ली दूर दर्शन पर अपनी दर्पण एकेडेमी के लिए कार्यक्रम (स्लॉट) हथियाकर लाखो-करोड़ो रुपये कमाए हैं। उसकी एनजीओ कॉंग्रेस से ही नही विदेशो से पैसा पाती है। 
इसी तरह कहा जाता है कि, मल्लिका साराभाई ने विदेशो मे अपने डांस शो के नाम पर कई लोगो के लिए कबूतरबाजी भी की है। लेकिन केंद्र की कॉंग्रेस सरकार की मेहरबानी से वह किसी भी कानूनी कार्रवाई मे नही फंसी है।

मजे की बात है कि मोदी और हिंदूजन के खिलाफ जहर उगलने मे हमेशा तीस्ता आगे रहती थी लेकिन कोर्ट मे कई बार फर्जी हलफनामे पेश करने के कारण कई बार फटकार खाने और मुस्लिमो के नाम से विदेशो से फंड ऐंठने के कारण वह खुद मुस्लिमो मे भी अपना भरोसा खो चुकी है। लिहाजा उसने अपनी 'छोटी बहन' मल्लिका को आगे कर दिया है।

मल्लिका का हिन्दू द्वेष नया नही है। वह गुजरात दंगो से पहले से हिन्दू विरोध के लिए मुखर रही है। बूढ़ी होने के कारण अब वह डांस तो कर नही सकती। सोचती है चलो 'मानवाधिकार वादी' बनाकर ही कमाई की जाये। गुजरात दंगो मे उसने हिंदुओं के खिलाफ काफी बवाल किया था, नतीजन कॉंग्रेस ने उसे 'उपकृत' भी किया है।
मल्लिका ने करीब एक महीने पहले अन्ना आंदोलन के दौरान भी अंग्रेजी अखबार DNA मे एक लेखा लिखकर मोदी पर भ्रस्टाचार के आरोप लगाए थे। बिना किसी ठोसा सबूत के सिर्फ हवाबाजी कराते हुए..! मोदी से खुश अन्ना को मोदी के खिलाफ भड़काने का काम भी अग्निवेश के साथ मिलकर मल्लिका ने किया था। जबकि इससे पहले वह अन्ना आंदोलन के साथ थी ही नही, लेकिन मोदी का नाम आते ही कूद पड़ी..!!
हमेशा गुजरात दंगो मे मुसलमानो की रूडाली गाने वाली मालिका ने कभी भी गोधरा मे ट्रेन मे जलाए गए 62 हिन्दुओ के लिए कुछ नही कहा। ना ही कभी कश्मीरी पंडितो या असम-बंगाल-पूर्वोत्तर मे मुल्लाओ व मिशनरियो के जुल्मो के शिकार हो रहे हिंदुओं के लिए कुछ कहा/किया।

ऐसे मे मल्लिका का मोदी को बदनाम करके कॉंग्रेस के अहसान चुकाने जरूरी ही हैं। दर असल गुजरात मे इस औरत की कोई इज्जत नही है। यह सिर्फ अपने सरनेम साराभाई के लिए जानी जाती है।

18 सितंबर 2011

जावेद अख्तर की साहित्यिक चोरी !

जिस तरह हमारे देश में नेताओं के सेकुलर हो जाने से उन्हें को चोरी और भ्रष्टाचार का लायसेंस मिल जाता है, ठीक वैसे ही चोरी करनेवाला साहित्यकार भी 'सेकुलर' हो तो उसका हर गुनाह माफ़ है.   
एक मिसाल देखें --
‘मेरी कुटिया के मुकाबिल आठ मंजि़ल का मकां
तुम मेरे हिस्से की शायद धूप भी खा जाओगे ! ’
कथायात्रा 1978 में एक गज़लकार दिनेशकुमार शुक्ल ने अपनी पूरी ग़ज़ल के बीच यह एक शेर लिखा था . 
बड़ी दिलचस्प बात है कि यही शेर पच्चीस साल बाद जनाब जावेद अख्तर ने अपनी किताब 'तरकस' में अपना बताकर कुछ इस तरह छापा है..

‘ऊंची इमारतों से मकां मेरा घिर गया ,                          
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गये !
 
इसे कहते हैं बेशर्मी से चोरी करके खुद को बहुत बड़ा शायर साबित करना और इसके सहारे फ़िल्मी दुनिया में करोडो रुपये कमाना.
 
लिहाजा अभी तक न तो किसी भी 'नामवर' आलोचक  ने ना ही साहित्यिक संगठन या मीडिया ने इस मामले पर प्रकाश डाला है.

आखिर जावेद अख्तर महान सेकुलर जो ठहरे.  और इस देश में सेकुलर हो जाने पर आपके सारे गुनाह माफ़ हो जाते हैं...!! ऊपर से कोंग्रेस सरकार बाकी असली साहित्यकारों को दरकिनार करते हुए उन्हें पद्मविभूषण जैसे तमगो से नवाजती है..!!













 

28 अगस्त 2011

अन्ना के 'जयचंदी' सेकुलर दोस्त

संतोष हेगड़े ने इस बार अनशन से पहले ही 'असहयोग' आन्दोलन शुरू कर दिया था। वही अनशन के खत्म होने के करीब चार दिन पहले से ही अग्निवेश ने अपना सुर बदलते हुए अन्ना को भला बुरा कहा था और अन्ना से पल्ला झाड लिया था। अग्निवेश और कपिल सिब्बल की पोल खोलता वीडियो यहाँ देखे.
अन्ना को संघ ने शुरू से ही अपना समर्थन दे दिया था। लेकिन अन्ना टीम लगातार बयान देकर खुद को 'अछूत' संघ से बेवास्ता बताते नही थक रही थी। इसी तरह बाबा रामदेव को भी टीम अन्ना अपमानजनक तरीके से दूर रखी थी, फिर भी बाबा ने अन्ना को साथ दिया। वही दारुल उलूम ने पाँच दिन बाद समर्थन दिया। बुखारी ने आंदोलन के खिलाफ फतवा ही निकाल दिया था और उसे मनाने के लिए अरविंद केजरीवाल रातो-रात बुखारी के हरम मे पहुँच गए थे।
बार-बार खुद को सामाजिक एक्टिविस्ट साबित करने वाले (खासकर भाजपा और संघ के खिलाफ) शबाना आजमी, जावेद अख्तर, और तीस्ता जावेद इस बार सिरे से गायब थे। तो आमिर खान को 12 दिन बाद अन्ना याद आए। महान सेकुलर जेहादी हर्ष मंदार और अरुणा राय ने तो अन्ना के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल दिया था।
इस सेकुलरो के जयचंदी बर्ताव और संघ के पूरे सहयोग के बावजूद अन्नादोलन का श्रेय और लाभ सेकुलर जमात के हाथ मे चला जाये तो कोई अचरज नही। इस देश मे यही होता रहा है। तमाम बलिदानो के बावजूद हिंदुओं के मात और गद्दारो को 'माल' मिलता रहा है। और एन वक्त पर देश और समाज के लिए पिछवाड़ा दिखाकर गद्दारी करने वाले जेहादी और सेकूलर जमाती श्रेय और सत्ता का सुख भोगते हैं। नेहरू-पटेल-सावरकर के युग मे भी यही हुआ था और आज भी।

18 जुलाई 2011

आतंकी हमले के बाद घटिया सियासत

नई दिल्ली [अरविंद जयतिलक]। देशद्रोहियों और आतंकियों को खुश होना चाहिए कि उन्हें भारत में एक नया पैरोकार मिल गया है। पैरोकार भी ऐसा-वैसा नहीं है। काग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह जैसा है। वही दिग्विजय सिंह, जिन्हें युवराज राहुल गाधी का सबसे भरोसेमंद सेनापति और दस जनपथ की जुबान समझा जाता है। पर काग्रेस के इस सेनापति के दिल में मुंबई बम विस्फोट में मारे गए लोगों के प्रति तनिक भी संवेदना नहीं है। अन्यथा, वह लाशों पर सियासत करने का दुस्साहस नहीं दिखाते।
घटना में मारे गए लोगों की चिता अभी ठंडी भी नहीं हुई है कि दिग्विजय सिंह ने एक बार फिर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और हिंदू संगठनों को लेकर बयानबाजियां करना शुरू कर दिया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि मुंबई आतंकी घटना में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है।
उन्होंने यह भी दावा किया है कि उनके पास अन्य आतंकी गतिविधियों में संघ की संलिप्तता के सबूत हैं। विचित्र लगता है कि जिन जाच एजेंसियों को काफी मशक्कत के बाद भी अभी तक कोई ठोस सुराग हाथ नहीं लगा, उस घटना के लिए दिग्विजय सिंह आरएसएस और हिंदू संगठनों को किस बिना पर जिम्मेदार ठहरा रहे हैं?
पूछा जा सकता है कि अगर उनके पास कोई सबूत है तो वे क्यों नहीं जाच एजेंसियों को उपलब्ध करा देते हैं? बगैर किसी सबूत के राष्ट्रवादी संगठनों पर देशद्रोह जैसे आरोप जड़ना क्या राजनीतिक नीचता की हद नहीं है?
आखिर दिग्विजय सिंह को यह अधिकार किसने दे रखा है कि वे जब चाहें तब किसी भी संगठन को आतंकी गतिविधियों में संलिप्त बता दें और आतंकी गतिविधियों में लिप्त लोगों की पैरोकारी करते फिरें।
सच तो यह है कि दिग्विजय सिंह के पास संघ और अन्य हिंदू संगठनों के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। पर वे जानबूझकर राजनीतिक वितंडा खड़ा करने की कोशिश इसलिए कर रहे हैं कि सरकार की नाकामियों पर परदा गिरा रहे। दिग्विजय सिंह का शिगूफा और अघोरतम आचरण उनके दिमागी दिवालियेपन को उजागर करने के लिए काफी है। पर हैरत होती है कि काग्रेस पार्टी अपने इस बड़बोले दरबारी के बुद्धि-चातुर्य पर लट्टू हुई जा रही है।
याद होगा पिछले दिनों ही दिग्विजय सिंह ने वाक्जुगाली की थी कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शह पर होने वाली कथित आतंकी गतिविधियों के बारे में उन्हें अपनी पार्टी को समझाने में तीन से चार साल लग गए। तो क्या अब यह माना जाए कि काग्रेस पार्टी अपने इस नए पाखंडी गुरु की राजनीतिक शिक्षा पर अमल करना शुरू कर दिया है?
क्या दिग्विजय की तरह काग्रेस पार्टी भी इस निष्कर्ष पर पहुंच चुकी है कि हर आतंकी घटना के लिए संघ और हिंदू संगठन ही जिम्मेदार हैं? हिंदू संगठनों पर जिस तरह दिग्विजय सिंह हमलावर हैं और काग्रेस पार्टी मौन साधे हुए है, उसे देखकर तो कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। 13/7 की आतंकी घटना पर दिग्विजय सिंह के कुत्सित बयान पर काग्रेस का यह कहना कि दिग्विजय सिंह कुछ भी गलत नहीं कह रहे हैं, आखिर क्या प्रतिध्वनित करता है?
मतलब साफ है कि दिग्विजय सिंह और काग्रेस दोनों की बुनियादी सोच आतंकवाद पर एक ही है, लेकिन काग्रेस और दिग्विजय सिंह इस सवाल से नहीं बच सकते हैं कि जब जाच एजेंसिया किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची हैं तो ऐसे में दिग्विजय सिंह संघ और हिंदूवादी संगठनों पर हमला बोलकर आखिर किसकी मदद कर रहे हैं?
कहीं ऐसा तो नहीं कि काग्रेस पार्टी दिग्विजय सिंह के मार्फत अनर्गल बयान दिलवाकर जाच एजेंसियों को गुमराह करने की कोशिश कर रही है? इस संभावना से इसलिए इनकार नहीं किया जा सकता कि सुप्रीम कोर्ट से फासी की सजा पा चुका संसद का हमलावर अफजल गुरु और 26/11 के आरोपी अजमल कसाब आज भी सरकार के संरक्षण में मौज काट रहे हैं।
तो क्या दिग्विजय सिंह इसी तर्ज पर 13/7 के आरोपियों को भी बचाकर वोट हड़पने की युक्ति भिड़ा रहे हैं? इस बात की निष्पक्ष जाच होनी ही चाहिए कि आखिर दिग्विजय सिंह किन लोगों के हाथों में खेल रहे है? पिछले दिनों आतंकी घटनाओं में संलिप्त बताकर गिरफ्तार की गई प्रज्ञा सिंह ने जोर देकर कहा था कि देश में होने वाली हर आतंकी घटनाओं में दिग्विजय सिंह का हाथ रहता है और वह आतंकियों से मिले हुए हैं।
प्रज्ञा सिंह की इस टिप्पणी पर भले ही देश ने ध्यान नहीं दिया, लेकिन दिग्विजय सिंह के खुराफाती दिमाग के कमाल को देखते हुए साध्वी प्रज्ञा सिंह के खुलासे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इस बात से कतई संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता है कि दिग्विजय सिंह संघ और हिंदू संगठनों पर इसलिए हमला बोल रहे हैं कि एक खास समुदाय के लोगों को अपने पाले में खड़ा करना चाहते हैं। यह ओछी हरकत दिग्विजय सिंह के राजनीतिक उद्देश्य का एक छोटा पड़ाव हो सकता है, लेकिन चरम लक्ष्य बिल्कुल ही नहीं। दिग्विजय सिंह का उदेश्य इससे भी ज्यादा घातक और अमानवीय है।
अक्सर देखा जाता है कि जब भी देश में कोई बड़ा आतंकी हमला होता है दिग्विजय सिंह की सक्रियता अचानक बढ़ जाती है। जाच एजेंसिया किसी निष्कर्ष पर पहुंचें, इससे पहले ही दिग्विजय सिंह संघ और हिंदू संगठनों को बदनाम करना शुरू कर देते हैं। ऐसे में उनकी राष्ट्रभक्ति को लेकर स्वत: संदेह उत्पन होने लगता है। वे संवैधानिक संस्थाओं में भी संघ विचारधारा से जुड़े लोगों की तथाकथित उपस्थिति को लेकर संदेह जताते देखे जाते हैं।
दिग्विजय सिंह न तो केंद्र सरकार में मंत्री हैं और न ही जाच एजेंसिया ही उनके अधीन काम करती हैं। फिर भी वे आतंकी घटनाओं के निष्कर्ष की भविष्यवाणी कैसे कर देते हैं, यह बात समझ से परे लगती है? क्या भारत सरकार ने उन्हें संविधानेत्तर शक्तिया दे रखी हैं या वे देश के जाने-माने जासूस हैं?
अगर मनमोहन सरकार और दस जनपथ अपने सेनापति की इस देशतोड़क बयानबाजी पर लगाम नहीं कसती है तो मानने में कोई हर्ज नहीं कि वे भी इस खतरनाक साजिश में परोक्ष रूप से शामिल हैं। ऐसे में मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी अगर आरोप जड़ती है कि दिग्विजय सिंह सोनिया और राहुल की सहमति से विष उगल रहे हैं तो इसे अनुचित कैसे कहा जा सकता है?
मौन होना स्वीकारोक्ति का ही दूसरा नाम है। सरकार और दस जनपथ दोनों ही दिग्विजयी मौन साध रखे हैं। दुनिया के सबसे शातिर आतंकी ओसामा बिन लादेन के अंतिम संस्कार को लेकर दिग्विजय सिंह चिंता व्यक्त करते हैं। अपनी छाती धुनते हैं, पर काग्रेस को लज्जा नहीं आती है।
दिग्विजय सिंह बाबा रामदेव को 'महाठग' कहते हैं। काग्रेस खुश होती है। दिल्ली के बटला हाउस काड पर दिग्विजय सिंह सवाल दागते हैं और इंस्पेक्टर एससी शर्मा को खलनायक सिद्ध करने की कोशिश करते हैं, लेकिन काग्रेस को शर्मिदगी महसूस नहीं होती है। समस्त राजनीतिक मर्यादाओं को तोड़ते हुए दिग्विजय सिंह देश की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा को नचनिया पार्टी तक कह जाते हैं, पर काग्रेस अपने सेनापति की बाह नहीं मरोड़ती है।
दिग्विजय सिंह सियासी पुण्य लाभ के लिए आतंकियों की दहलीज पर नाक रगड़ते देखे जाते हैं, पर देशभक्ति का राग अलापने वाली काग्रेस शर्म से डूब नहीं मरती है, बल्कि उसका सीना गर्व से उतान हो जाता है।
जिस कॉमनवेल्थ गेम्स के महा भ्रष्टाचारी सुरेश कलमाड़ी को जेल भेजकर काग्रेस भ्रष्टाचार के खिलाफ ताल ठोंकती है, उसी को दिग्विजय सिंह बेगुनाह बताते हैं। शहीदों की विधवाओं के लिए आवंटित आदर्श हाउसिंग सोसायटी की जमीन को अपने सगे-संबंधियों में वितरित कर अपनी गद्दी गंवा चुके अशोक चव्हाण भी दिग्विजय सिंह की निगाह में पाक-साफ हैं। पर वे 26/11 के आतंकी हमले में शहीद हेमंत करकरे की शहादत पर सवाल खड़ा करने से बाज नहीं आते हैं।
सच तो यह है कि आतंकवाद पर दिग्विजय सिंह और कांग्रेस का समवेत स्वर राष्ट्रवादी मिजाज के लोगों के मनोबल को तोड़ने वाला और देश को लहुलुहान करने वाले आतंकियों की पैरोकारी वाला है। देश के लोगों को आतंकियों के इन नए पैरोकारों से सावधान ही रहना होगा।
वोट बैंक के लिए फिसलती जीभ
राजीव रंजन तिवारी। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में 13 जुलाई को हुए सीरियल ब्लास्ट और फिर मौत, भय, दहशत और चीख-पुकार को शायद ही कोई भूले, लेकिन अफसोस कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतात्रिक देश भारत के कथित पहरूओं की बेलगाम जुबान ने दुनियाभर में यह पैगाम दे दिया है कि यहा के नेता अपने 'वोट बैंक' के लिए किसी भी आतंकी पर कार्रवाई नहीं होने देंगे।
बेलगाम जुबान वाले नेताओं के आत्मविश्वास भरे अंदाज से लगता है कि उन्हें इस बात का आभास है कि इस वारदात को किस जाति, बिरादरी और कौम ने अंजाम दिया होगा।
शायद यही वजह है कि सब कुछ जानते-समझते हुए भी नेताओं की बयानबाजी जारी है। दिलचस्प यह है कि हादसे के दिन से ही सत्ताधारी और गैरसत्ताधारी नेताओं के जिस तरह के वक्तव्य आ रहे हैं, उससे इसी बात का डर है कि मामले की जाच में जुटी एजेंसियों की कार्यशैली प्रभावित न हो जाए, क्योंकि भारतीय एजेंसिया भी सरकार और सत्तासीन नेताओं के इशारे पर ही चला करती हैं, जैसा कि अक्सर आरोप लगते रहते हैं।
देश में बेलगाम जुबान के प्रतीक के रूप ख्याति हासिल करते जा रहे काग्रेस के बड़े नेता दिग्विजय सिंह ने मुंबई ब्लास्ट पर यह कहकर नई बहस छेड़ दी है कि इन धमाकों में हिंदू संगठनों के हाथ होने से इनकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने देश में पहले हुए धमाकों की जाच के दायरे में भाजपा को भी लाने की माग कर डाली। हालाकि उन्होंने यह भी कहा कि हमें एनआइए और महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधक दस्ते [एटीएस] को अपना काम करने देना चाहिए।
दरअसल, दिग्विजय ने अपने बयान की पुष्टि के लिए कहा कि अगर एनआइए 2007 में हुई आरएसएस नेता सुनील जोशी की हत्या की जाच करे तो इस हत्याकाड से कुछ भाजपा नेताओं के नाम उजागर हो सकते हैं। उन्होंने पूर्व में हुए कुछ बम धमाकों के लिए आरएसएस को कठघरे में खड़ा किया। इसके लिए उन्होंने यहा तक कहा कि आतंकी गतिविधियों में आरएसएस के शामिल होने के मुद्दे पर वह कोर्ट में भी हाजिर हो सकते हैं।
इस तरह साफ हो जाता है कि दिग्विजय सिंह देश की एक कौम के 'वोटबैंक' की राजनीति कर रहे हैं, जो इस दुख की घड़ी में अच्छा नहीं लगता।
चूंकि काग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह 'वोटबैंक' की राजनीति कर रहे हैं और वे अपने पक्ष में एक विशेष कौम को जोड़ने की रणनीति बना रहे हैं तो इस पर भाजपा कैसे चुप बैठ सकती है। स्वाभाविक है, उसे भी चुनाव लड़ना है। वह काग्रेस की प्रतिद्वंद्वी पार्टी है। इसलिए भाजपा का दिग्विजय के उलट बयान देना लाजिमी है। सो, भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन ने कह डाला कि दिग्विजय सिंह का बयान मुंबई धमाकों की जाच को भटकाने की चाल का हिस्सा है।
उन्होंने कहा कि मुंबई ब्लास्ट के बाद दिग्विजय सिंह लाशों पर राजनीति कर रहे हैं। शाहनवाज ने कहा कि जब देश के गृहमंत्री और जाच एजेंसिया नहीं बता पा रही हैं कि इन हमलों के पीछे किसका हाथ है तो फिर दिग्विजय सिंह किन सूत्रों के आधार पर इस तरह के बयान दे रहे हैं। दिग्विजय को जुबानी डायरिया हो गया है।
बीजेपी ने तो यहां तक कह दिया कि लगता है कि दिग्विजय के शरीर में 'ओसामा जी' की आत्मा घुस गई है। बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि केंद्र सरकार की अगुवाई करने वाले काग्रेसी नेता आतंकियों को बचाने और राष्ट्रवादियों पर आरोप मढ़ने में लगे हैं।
खैर, बड़बोलेपन में दिग्विजय का जवाब नहीं है। वे इससे पहले भी कई बार उल्टे-सीधे बयान देकर सुर्खियों में रह चुके हैं, लेकिन यदि उनके बयानों को गंभीरता से लिया जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि वे हर हाल में देश के एक कौम के 'वोटबैंक' को काग्रेस के लिए सुरक्षित कर लेना चाहते हैं। दूसरी तरफ राज ठाकरे और मायावती भी अपनी-अपनी ओर से अशोभनीय टिप्पणियां कर रहे हैं।
उधर, काग्रेस के महासचिव राहुल गाधी ने मुंबई में हुए ब्लास्ट की तुलना ईरान, ईराक या फिर अफगानिस्तान में हो रही आतंकी घटनाओं से कर दी।
अफसोस की बात है कि इस संकट के दौर में देश के नेता वोटबैंक की राजनीति कर रहे हैं। कम से कम इस वक्त तो पीड़ितों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई में सरकार की मदद करनी चाहिए, लेकिन देश के नेता जो कर और कह रहे हैं, वह हास्यास्पद नहीं, बल्कि रोने लायक है। अभी आगे-आगे देखिए होता है क्या!
Source: Dainik Jagran

26 अप्रैल 2011

सेवा, पैसा और अब खौफ!

हर हाल में धर्मान्तरण को बेताब है चर्च !!
हमारी ईसाई मिशनरीज को भी दाद देनी पड़ेगी. कभी सेवा का चोगा पहनकर, कभी NGO  को हथियार बनाकर तो कभी नक्सलियों के साथ हथियारबद्ध होकर तो कभी बेनी हिन् जैसे नौटंकी जादूगर की बंगलोर में विशाल चंगाई सभा करवाकर धर्मान्तरण करने को उतारू रहने वाले चर्च की करतूते हमेशा नायाब रहती हैं! तरीका चाहे जैसा भी हो, चाहे मानवीय या दानवीय हो,  भारत में उसका एक ही लक्ष्य है ज्यादा से ज्यादा हिन्दुओं को ईसाई बनाना.

जिस तरह MNC (कम्पनियाँ) अपने प्रोडक्ट बेचने के लिए हमेशा नई-नई स्कीमे पेश करती है, सेल लगाती  है बड़े-बड़े डिस्काउंट का झांसा देती है. और घटिया व महँगा होने के बावजूद भोले-भाले लोग फंस जाते है,  ठीक वैसे ही भारतीय चर्च और मिशनरीज अलग-अलग रूपों और 'उपायों' के जरिए 'परमेश्वर ईशू' की मार्केटिंग में सतत आगे रहते है. इस बार भोले-भाले लोगो को प्रभू ईशू की शरण में लाने के लिए उसने हथियार बनाया है 'खौफ' को !!

भारत में चर्च का एक नया शफूगा है- 'जजमेंट डे' यानी 'क़यामत का दिन' या 'न्याय का दिन'.  सात समंदर पार किसी सिरफिरे मिशनरी प्रचारक ने जब से 'पवित्र बाइबल' का हवाला देकर २१ मई को धरती के विनाश की खबर फैलाई है. हमारा TRP का भूखा मीडिया उसे महिमा मंडित करते हुए मुफ्त में प्रचारित कर रहा है.  इस बात और विचार पर बिना कोई सवाल दागे!! लगे हाथ भारतीय चर्च इस धर्मान्तरण के 'सुनहरे मौके' को गंवाना नहीं चाहता!

जिस तरह दक्षिण भारत में सुनामी के हादसे के शिकार मजबूर लोगो के बीच 'धर्मांतरण का सुनहरा अवसर' देखने में हमारा चर्च बेताब हुआ था, वैसे ही इस 'क़यामत के दिन' को भुनाने में भी वह नहीं चूक रहा है. और भारत के पीलीभीत, एटा, बिजनोर, दरभंगा, रीवा, क्योंझार और गोधरा सहित कई शहरों में बड़े-बड़े होर्डिंग लगाकर लोगो में खौफ पैदा कर रहा है. यही नहीं, वह इससे बचने के लिए परमेश्वर  ईशू की शरण में आने के लिए 'आमंत्रित' कर रहा है. क्योंकि चर्च का हमेशा मानना है की प्रभू ईशू ही मुक्ति और रक्षण प्रदान करते हैं. और चारो तरफ ईशू का ही साम्राज्य होना चाहिए.
जाहिर है इस खौफ के चलते लाख दो लाख हिन्दू फंस जाए और ईसाई बन जाए, तो कोई हैरत की बात नहीं. क्योंकि भारतीय जनमानस हमेशा चमत्कारों के पीछे भागता रहा है. मजे की बात है कि कानूनी दांव-पेंचो से बचने के लिए इन होर्डिंग्स पर क़यामत के दिन के खौफ के साथ ही परमेश्वर ईशू की मार्केटिंग की है. लेकिन इसे जारी करनेवाले का नाम नहीं लिखा है. सिर्फ www.familyradio.com का ही नाम लिखा है. यानी कोई किसी पे उंगुली ना उठा सके और लोग खौफजदा होकर प्रभू ईशू की शरण में भी आ जाए. हमारी सुस्त पुलिस तीन-चार दिन बाद होश में आकर यह होर्डिंग हटा भी ले तो भी टार्गेट लोगो तक ईशू का सन्देश पहुँच जाएगा. 

हालांकि अभी तक पुलिस ने लोगो को डराने के इस पावन मिशनरी काम के लिए किसी को गिरफ्तार नहीं किया है. लेकिन अगर कर भी ले तो अधिकाँश राज्यों में पंगु धर्मांतरण कानूनों के चलते किसी भी दोषी मिशनरी का कुछ बिगड़ने वाला नहीं है. अगर कोई पकड़ा भी गया तो ऊपर सर्वशक्तिमान सोनिया माई (सोनिया माइनों एंटानियो) है ही. जिसके सामने दंडवत प्रणाम करने को दसियों राज्यों के मुख्यमंत्री अपना गौरव महसूस करते हैं. अगर किसी पुलिस वाले ने होर्डिंगबाज मिशनरी को पकड़ भी लिया तो सोनिया के एक इशारे पर उसे छोड़ दिया जाएगा.


भारतीय चर्च के इस कारनामे को देखकर शायद 'प्रभू ईशू' भी रो रहे होंगे!

उड़ीसा के कंधमाल में वनवासियों की सेवा में ४० साल से समर्पित रहे स्वामी कृष्णा नन्द का मामला हमने देखा है. स्वामी जी चर्च के धर्मान्तरण अभियान में बाधक थे तो नक्सलियों के साथ हाथ मिलाकरचर्च ने उनकी और उनके अनुयाइयो की निर्मम ह्त्या कर दी थी. आज दिन तक किसी भी दोषी दरिन्दे को सजा नहीं हुई है..!! हमारे मीडिया को सिर्फ दारासिंह और हिन्दू संगठनो को गरियाना ही आता है.  आज भी देश के अधिकाँश हिस्सों में भोले-भाले दलितों, वनवासियों को सेवा के बहाने या डराकर ईसाई बनाने का धंधा जारी है. जहां-जहां नक्सल है वहां पर चर्च अपनी दूकान चलाता है. लेकिन क्या मजाल कि कोई प्रणव 'जेम्स', बुरका दत्त, राजदीप या तरुण तेजपाल कोई स्टिंग ओपरेशन करके चर्च को बेनकाब करे!

चित्र सौजन्य : 'फादर' गूगल 

16 फ़रवरी 2011

प्रणव 'जेम्स' राय की असलियत !!


भारतीय पत्रकारिता में बुर्का दत्त (NDTV ), राजदीप सरदेसाई (CNNN IBN) के काले कारनामे तो हम देख ही चुके हैं. लेकिन मीडिया में काबिज बड़े सफेदपोश मगरमच्छ अपनी काली करतूतों के बावजूद अब भी 'हीरो' बने हुए हैं. उनमे से एक है प्रणव 'जेम्स' राय. जी हाँ, NDTV के मुखिया की बात कर रहा हूँ. महज चंद सालो में मामूली पत्रकार से एक मीडिया साम्राज्य के मालिक बनने वाले इस 'महान सेकुलर' पत्रकार की कारस्तानियो का लेखा जोखा पेश है 'ज़ूम इन्डियन मीडिया' नामक एक ब्लॉग पे जिसका लिंक नीचे दिया जा रहा है. इस साहसी ब्लॉग पर प्रणव 'जेम्स' राय का पूरा कच्चा चिट्टा मौजूद है. साथ ही अन्य महत्वपूर्ण लिंक भी उपलब्ध हैं. इसके अलावा 'सन्डे गार्जियन' नामक अंग्रेजी अखबार में भी NDTV के इस मुखिया के पुण्य कर्म प्रकाशित होते रहते हैं. इस लिंक के जरिए इस 'पर्दाफाशु' लेख पर ज़रा गौर फरमाइए...आप खुद-ब-खुद जान जायेंगे कि हमारे प्रणव'जेम्स' राय इतने 'सेकुलर', प्रो-कोंग्रेसी और प्रो-कम्युनिस्ट और प्रो-पाकिस्तान क्यों हैं. ये है NDTV की 'निष्पक्ष पत्रकारिता'  का 'राज़' !!

http://zoomindianmedia.wordpress.com/2011/02/14/ndtv-and-prannoy-roy-once-upon-a-time/

09 फ़रवरी 2011

धर्मान्तरण के दलाल जोन दयाल को वनवासियों से तकलीफ !!


धार्मिक उन्माद फैला रहा है जॉन दयाल
जैसे-जैसे नर्मदा कुम्भ की तारीख नजदीक आ रही है, जबरन धर्मांतरण को उतारू मिशनरियो की घबराहट ब़ढ रही है। नर्मदा के किनारे आयोजित किए जा रहे इस मॉं नर्मदा सामाजिक कुंभ की व्यापक पैमाने पर तैयारियां चल रही हैं। यह आयोजन धर्म के प्रति आस्था व श्रद्धा पक्की करने, राष्ट्रीय एकात्मता और एकता का भाव जगाने तथा सामाजिक समरसता का अलख जगाने हेतु किया जा रहा है। फिर भी इन धर्मानातार्ण आतुर मिशनरियो को आपत्ति है. शायद उनको डर है कि करोडो रुपये खर्च करके ईसाई बनाए गए हिन्दू वापस अपना मूल धर्म ना अपना ले. इसलिए चर्च वनवासी बंधुओं में डर फैलाते रहते हैं. और वनवासियों के मन से यही डर निकालने, उनमे स्वाभिमान जगाने के लिए यह कुम्भ समर्पित है.

छत्तीसगढ़ की सीमाओं को छूने वाले मण्डला में नर्मदा सामाजिक कुंभ १०, ११ और १२ फरवरी को होना है और इसकी तैयारी एक साल से चल रही है। तीन दिन के इस कुंभ में 20 लाख वन वासियों के जुटने की उम्मीद की जा रही है।

जॉन दयाल की ओर से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में यह कहा गया है कि कुंभ मेले में ईसाइयों को हिंदू बनाने की तैयारी चल रही है। जॉन दयाल ऑल इंडिया कैथोलिक यूनियन” के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। उन्होंने कुंभ के आयोजको पर बेबुनियाद
आरोप लगाया है कि कई ईसाई परिवारों में जाकर वनवासियों पर वापस हिंदू बनने के लिए दबाव डाल रहे है। ईसाई समाज की प्रार्थना सभाओं में बाधा डालने की कोशिश की जा रही है।

वास्तव में हकीकत यह है कि मण्डला में बीते वर्षो में ईसाई मिशनरियों ने धर्मातरण का जाल तेजी से फैलाया है। माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ का उद्देश्य आदिवासियों की संस्कृति, उनकी पहचान और जीवन शैली ही नहीं बल्कि उनके आराध्य
बड़ा देव या बूढ़ा देव के प्रति उनकी आस्था पर होने वाले आघात से उन्हें सुरक्षित करना है।

एक ओर जहाँ मंडला के इसाई और मुस्लिम परिवारों ने इस कुंभ का स्वागत किया है, वहीँ जॉन दयाल का इस तरह का बयान देश कि एकता और अखंडता के लिए खतरा  है। जॉन दयाल जैसे लोगो के खिलाफ शासन को कठोर कार्यवाही करनी चाहिए।
गौर तलब है कि, गोधरा के बाद गुजरात में भड़की हिंसा में भी जोन दयाल ने काफी बवाल मचाते हुए हिन्दू जन के खिलाफ अनर्गल दुष्प्रचार किया था. और वह सवर्ण-दलित-आदिवासी नाम से हिन्दू समाज में विभाजन की कोशिश भी आये दिन करता रहता है.
इधर जॉन के बयां से पल्ला झाड़ते हुए मंडला के स्थानीय इसाई संगठनों ने कुम्भ का स्वागत किया है. प्रमाण के तौर पर फोटोग्राफ्स संलग्न हैं.

08 फ़रवरी 2011

इमाम का 'काम-जेहाद'

पेश है इमाम साहब का एक कारनामा. यह घटना मुस्लिम देश दुबई की है. अपने साथ कामुक फोटो रखने और औरतो के साथ कामुक हरकते करने के लिए इमाम साहब को जेल की सजा मिली है. अगर भारत में किसी कोर्ट ने किसी कामुक इमाम/फादर  को अपने दुष्कर्मो की सजा दी होती तो सारा सेकुलर मीडिया, मानवाधिकारवादी, कोंग्रेस-कम्युनिस्ट-पासवान-मुलायम आसमान सर पे उठा लेते...और न्यायपालिका पर ही सवाल उठाते. भारत में आये दिन इमाम, मौलवी और मिशनरियो के फादर ऐसे पुण्य  काम करते रहते हैं. लेकिन क्या मजाल कि कोई खबरिया चैनल उसे जनता के सामने लाने की जुर्रत करे.  ऐसा करने पर कही हमारे सेकुलर खबरियो को चर्च और गल्फ से 'खैरात' मिलना बंद ना हो जाए!! भारतीय मीडिया हिन्दू साधू-संतो को बदनाम करने के लिए और जुर्म साबित होने से पहले ही मुजरिम करार देने में ज़रा भी नहीं चूकता. आखिर हमारा सेकुलर मीडिया पैदा ही इसलिए हुआ है!!
पेश है इमाम साहब के 'काम-जेहाद' का असली मजमून..

Imam in Dubai jailed for possessing nude photos

http://in.news.yahoo.com/imam-dubai-jailed-possessing-nude-photos-20110206-224739-590.html
Dubai, Feb 7 (ANI): An imam in Dubai has been acquitted for seducing women to have sex with him using his BlackBerry but was jailed him for possessing nude photos.
Court's Presiding Judge Eisa Al Sharif overturned the primary judgment, one year in jail, and acquitted the 35-year-old Egyptian imam of seducing women and urging girls to have sex with him by abusing one of the telecommunication services.
"The court has, however, jailed the accused, S.M., for one month followed by deportation for possessing pornographic materials. The nude photos will be confiscated," Gulf News quoted Al Sharif as saying.
In December, the imam was convicted of seducing women and urging girls to have sex with him by abusing BlackBerry Messenger [BBM].
Prosecutors accused him of persuading an unidentified number of women to have sex with him after communicating with them via BBM and forwarding indecent photos to them.
He was additionally charged with possessing indecent photos with the intention to show them to others. (ANI)

02 फ़रवरी 2011

अब न्यायपालिका के सेकुलर 'बाप्तिस्ता' की तैयारी!!

इस देश में हम देख ही चुके हैं कि राजनीति से लेकर मीडिया और अफसरशाही का सेकुलर 'बाप्तिस्ता' (या कहिये सुन्नत) करके उसे सुनियोजित तरीके से हिन्दू-विरोधी बना दिया गया है. अब इस तथाकथित 'सेकुलरिज्म' का ताजा शिकार है न्यायपालिका.

हाल ही में ईसाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ईसाई मिशनरियो के जबरन और लालच के बल पर धर्मांतरण पर अपनी टिप्पणी दी थी. जिससे भारत में चर्च की 'मानव-सेवा' का सच नंगा हो गया. लेकिन दूसरे ही दिन चर्च सहित बिकाऊ मानवाधिकारवादियो और मीडिया ने ऐसा बवाल मचाया कि, भारत की सबसे बड़ी कोर्ट को अपनी ही टिप्पणी हटानी पडी.

विगत कई वर्षो से न्यायपालिका को सेकुलर अपने पक्ष में दूषित करने में जुटे हुए हैं. इसके लिए सेकुलर नेतागिरी के साथ ही मीडिया, मानवाधिकार और महेश भट्ट नुमा सेलिब्रिटी का इस्तेमाल किया जाता रहा है. लोकतंत्र के तीन खम्भे संसद, मीडिया और हर्ष मंदर जैसे अफसर तो पहले ही इस सेकुलर सोच के शिकार हो चुके हैं. और जेहादियों व चर्च-चीन की गोद में बैठकर हिन्दू-विरोध की रोटियाँ सेंक रहे हैं.

अयोध्या मामले से लेकर दारा सिंह और कर्नाटक के मामलों में न्यायपालिका को प्रभावित करने का प्रयास हमने खुले आम देखा है. पहले शाहबानो में भी ऐसा ही दबाव बनाया गया था. अब नेहरू द्वारा प्रणीत और चर्च-जेहादियों द्वारा परिभाषित सेकुलरिज्म के प्रभाव में न्यायालय भी अपने फैसले बदलने लगे हैं,  तो हिन्दुओं को इन्साफ कहीं भी नहीं मिलेगा... सिर्फ हिंद महासागर में डूबकी ही लगानी पड़ेगी (क्योंकि एकमात्र हिन्दू राष्ट्र नेपाल भी कम्युनिस्ट चीन की रखैल माओवादियों की बलि चढ़ा गया है).

विनायक सेन के मामले में भी यही हाल है. उनकी देशद्रोही गतिविधियों के कारण सजा मिली है. लेकिन उस सजा को मानने के लिए ना नक्सलवादी तैयार है ना कम्युनिस्ट/मानवाधिकारवादी/कोंग्रेसी/ जैसे सेकुलर!! छत्तीसगढ़ से लेकर अमेरिका तक विनायक सेन को 'न्याय' दिलाने के लिए धरने-प्रदर्शन जारी हैं!! यहाँ एक और मजेदार बात है कि यूरोपीय संघ और चर्च भी विनायक सेन के सात है...!! विनायक सेन जैसे 'मानवाधिकारवादी' के चर्च के सात ताल्लुकात संदेहास्पद हैं. उड़ीसा के कंधमाल में स्वामी कृष्णानंद की निर्मम ह्त्या के लिए भी चर्च ने नक्सलवादियो का 'सहयोग' लिया था. और इसी के चलते मेडम सोनिया आये दिन नक्सलवादियो /माओवादियों को लेकर 'नरम' बयान देती रहती है. और ऐसा माहौल बनाती रहती हैं कि उनका चिदू पोपट नक्सलवादियो के खिलाफ कुछ भी सख्त कार्रवाई न करे. आखिर नक्सलवादी/माओवादी ईसाई धर्मान्तार्ण मिशनरियो के लिए जमीनी तैयारी और हिफाजत जो करते हैं. हैरत की बात ये भी है की देश के जिस हिस्से में चर्च सक्रीय है, वहां चर्च मिशनरियां भी 'मानव-सेवा' में 'समर्पित' हैं...यानी कुछ न कुछ लिंक जरूर हैं.

कुछ ऐसे ही हालात गुजरात के मामले में हैं. गोधरा के गुनेहगार खुले आम घूम रहे हैं..लेकिन गुजरात में मासूम 'जेहादियों' के समेत, दूधपीती मासूम इशरत जहां और सोराबुद्दीन के कथित हत्यारों को सजा दिलाने के लिए कोर्ट पर बनाए गए दबाव और गुजरात से बाहर न्याय दिलाने की गुहार जैसी 'सेकुलर करतूते' तो हम देख ही चुके हैं.

आपने यह भी देखा होगा कि बेस्ट बेकारी बडौदा की चश्मदीद जाहिरा शेख ने जब हिन्दुओं और भाजपा नेताओं के खिलाफ कोर्ट में बयान दिया तो वह सभी सेकुलरो के 'आँख की तारा' थी लेकिन जब उसने अपना बयान बदला तो सेकुलरो को ज़रा भी नहीं सुहाया और तुरंत उसके खिलाफ बिकाऊ तरुण तेजपाल ने 'स्टिंग ओपरेशन' किया!! 

न्याय के बहाने न्यायपालिका पर दबाव बनाने का 'सेकुलर- कर्म' काफी दिनों से चल रहा है.  देश में जब भी कोई फैसला हिन्दुओं के पक्ष में या चर्च/जेहादियों के खिलाफ जाता है तो 'चर्च-गल्फ पोषित' मीडिया -मानवाधिकारवादी और नेता रोना रोने लगते हैं. और अपने हक़ में 'न्याय' नहीं होने तक हर तरह से दबाव बनाने की कोशिश करते हैं.  उनके अनुसार उनके हक़ में फैसला ही 'न्याय' है बाकी सब 'अन्याय' है.

न्यायालय के मामलो में 'जेहादी-क्रूसेडर' तत्वों के बढ़ते दखल और दुष्प्रभाव पर एक और लेख आप यहाँ पढ़ सकते हैं, जो सुरेश चिपलूनकर की धारदार कलम से निकला है.

पेश है कोर्ट द्वारा चर्च की करतूतों पर की गयी टिप्पणी सहित 'असली' फैसला' जो चर्च के विरोध के बाद में बदल दिया गया.

Supreme Court decries forceful religious conversions

http://www.christianaggression.org/item_display.php?id=1295634765&type=NEWS
Jan 21, 2011
CNN IBN

New Delhi: The Supreme Court, while upholding life imprisonment for Dara Singh and Mahendra Hembram, main accused in the killing of Australian missionary Graham Staines and his two sons in Orissa's Koenjhar district in January 1999, also came down heavily on Christian missionaries for indulging in forceful conversions.
The bench of justices P Sathasivam and BS Chauhan observed that there cannot be any justification for interference in someone's belief while decrying forceful conversions.
While delivering the verdict in the murder case on Friday the court observed that investigations reveal that Staines was involved in conversions and there are materials to suggest that the missionaries were indulging in forceful conversion in the area.


Dara Singh's lawyer SS Mishra said that the missionaries were indulging in forceful conversions and his client just wanted to threaten them and not kill Staines.

"There are materials which suggest that forceful conversion was there.
However, so far as the material for conviction is concerned Supreme Court maintained the judgement of the High Court. There is no direct evidence, no one had seen crime done by accused. It appears that they had gone to threaten and teach them a lesson and not kill Staines," said Mishra.

Staines and his two sons, Philip (10) and Timothy (6) were burnt to death while they were sleeping inside a van outside a church at Manoharpur village in Koenjhar district of Orissa on January 22, 1999 by Dara Singh and Mahendra Hembram.

Both Singh and Hembram have been sentenced to life in the case.

सुरेश चिपलूनकर होने के मायने..


आम हिन्दुस्तानी की आवाज को जरूरत है हमारी-आपकी ताकत की !! मीडियाई भ्रष्टाचार के इस माहौल में एक ईमानदार विकल्प देने की पहल को अनसुना कर दिया तो कल हमारी कोई नहीं सुनेगा.

भारतीय पत्रकारिता ने प्रिंट से होते हुए इलेक्ट्रोनिक मीडिया और फिर वेब मीडिया में अपनी दस्तक दे दी है. इसके समानांतर ब्लोगिंग ने भी अपने पाँव पसारे. मुख्यधारा के मीडिया कहे जाने वाले प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक में कुछ राष्ट्रवादी अपवादों को छोड़कर अधिकाँश हिस्सा ‘वाम और वंश’ की अराधना में मग्न है. सेकुलरवाद के नाम पर ऐसा करना सुविधाजनक भी है, और फायदे का सौदा भी. आप खा-पीकर वाम-वंश की साधना कर सकते हैं, उनकी भ्रष्ट करतूतों पर परदा डाल सकते है, और इस तरफदारी के कारण के लिहाज से 'सेकुलरिज्म' (वह सेकुलरिज्म जिसकी परिभाषा चर्च या जेहादी तय करते हैं ) का हवाला दे सकते हैं. (राडिया के कारण -बुर्का दत्त-प्रभु चावला-राजदीप सरदेसाई (सी डी खाऊ) जैसे 'महान सेकुलर' पत्रकारों की असलियत तो हम जान ही चुके हैं) यानी हिन्दुस्तान में नेतागिरी से लेकर मीडियागिरी में आप सेकुलर हो तो बहुत फायदे में रहोगो, बहुत से सवालों से ऊपर रहोगे!!

लेकिन इस माहौल में भी कुछ बन्दे राष्ट्रवाद और सचाई की मशाल जलाने की गुस्ताखी कर रहे हैं. उज्जैन निवासी सुरेश चिपलूनकर भी उन गिने-चुने दुस्साहसी लोगो में हैं जो पिछले कई वर्षो से यह 'घाटे का असुविधाजनक'  काम कर रहे हैं. आला दर्जे के गाँठ के गोपीचंद बनकर लिखने वाले सुरेश जी के पीछे ना तो कोई सत्ता-प्रतिष्ठान है और ना ही किसी चर्च या खाड़ी देश का पोषण. और तो और वह सिर्फ लिखने की रस्म अदायगी नहीं करते बल्कि पूरी प्रतिबद्धता से लिखते हैं. विषय पर पूरा रीसर्च करके और मनन करके वह तर्कों की ऐसी धार तैयार करते हैं कि उनके वैचारिक विरोधी भी इसके कायल हैं (हालांकि वह इसे स्वीकार करने में थोड़ी 'सेकुलर कंजूसी' जरूर करते हैं)

सुरेशजी भगवान् महाकाल की नगरी में रहते हैं इसलिए निर्भीक हैं, ईमानदार हैं, लाजवाब लिखते हैं, राष्ट्र के लिए सोचते हैं, और किसी 'इतालवी महारानी' या 'लाल झंडे वाले देश' की मेहरबानी या इशारे पर नहीं लिखते हैं. ना ही हिन्दुस्तान को 'दारुल-हरब' बनाने को बेताब किसी 'जेहादी देश' से खैरात पाते है और ना ही धर्मान्तरण के धंधे के लिए MNC कंपनी की तर्ज पर काम करने वाले वेटिकन चरक से उन्हें 'मानव-सेवा' के लिए कोई दान मिलता है. वह सिर्फ भारत मां के लिए, उसकी जनता -जनार्दन के लिए लिखते हैं.

और इसी सचाई और स्वतन्त्र धारदार लेखनी के कारण आज सुरेशजी के ब्लॉग के हजारो की तादाद में सब्स्क्राइबर / फोलोअर हैं.  और अपंजीकृत पाठको की संख्या का तो हिसाब ही नहीं है. वह अपने ब्लॉग पर भी जबरदस्त हिट पाते हैं. खुशी की बात है कि दिन-ब-दिन उनके चाहको की संख्या बढ़ती जा रही है (जिस कारण 'जेहादी-क्रूसेडर सेकुलरो' की नींद भी हराम हो रही है!). उनकी प्रसिद्धी के यह आंकड़े हिन्दी की कई नामी वेबसाईट से भी ज्यादा हैं.

सुरेश जी कारण न केवल राष्ट्रवादी-हिन्दुत्ववादी ब्लोगरो के मन में आशा का संचार हुआ है बल्कि एक हौंसला, बेहतर लिखने की प्रेरणा भी मिली है. यूं कह सकते हैं कि ब्लॉगजगत में सुरेश चिपलूनकर अपने आप में एक संस्थान बन चुके हैं.

काफी समय से इसकी मांग थी कि, सुरेशजी ब्लोगिंग से आगे बढे और उनके नेतृत्व में एक समग्र वेबसाईट की शुरूआत की जाए. और इसी क्रम में एक पहल की जा रही है. लेकिन इसमे सबसे बड़ी समस्या है धन की. क्योंकि उन्हें सेकूलर मीडिया की तरह अन्दर-बाहर से कोई आर्थिक सहायता नहीं मिलती है. और ना ही वह ऐसी किसी सहायता से मदद पाकर अपनी कलम की धार को गिरवी रखना चाहते हैं.
मध्य प्रदेश के उज्जैन नगर के लेखक सुरेश चिपलूनकर महज दो कंप्यूटर वाला छोटा-सा सायबर कैफे चलाते है. यही उनकी आमदनी का जरिया और और यही उनकी ब्लोगिंग का औजार है. अभावो के बावजूद राष्ट्र चिंता में समय-साधन और साधना समर्पित करने वाले इस शख्स के प्रयास सफल बनाने में हम सबकी सफलता है. वह जनता के लिए लिखते हैं, अत: उनकी तरफ मदद का हाथ बढाने का जिम्मा भी आप-हम जैसे आम नागरिको को हैं. ..जो इस देश के लिए सोचते हैं, बदलाव लाने के इच्छुक हैं, सच जानने के इच्छुक हैं. कथित मुख्यधारा के सेकुलर मीडिया की कली करतूतों और एकतरफा पत्रकारिता से त्रस्त हैं. अगर हम सुरेशजी का साथ नहीं देंगे तो राष्ट्र-वैभव के इस यज्ञ में आहुती देने के लिए आगे आने की जोखिम कौन प्रतिभाशाली लेखक/पत्रकार उठाएगा...?

जो लोग सुरेशजी को पढ़ चुके हैं. उन्हें अहसास है कि उनको पढ़ने का एक अलग ही नशा है. एक अलग ही आनंद हैं. वह सेकुलरिज्म की अफीम पीलाकर सुलाए गए लोगो को झिंझोड़कर जगाते हैं. वह  सेकुलरो और उनकी राष्ट्रघाती करतूतों पर ऐसे सवाल उठाते हैं कि हम विस्मित हो जाते हैं. जिस तरह से वह सेकुलरिज्म के नाम पर होनेवाले गोरखधंधे की पोल खोलते हैं ... मन अनायास ही उन्हें 'सुरेशलीक्स' (विकीलिक्स की तर्ज पर) कहना चाहता  है.  और सबसे बड़ी बात आज देश और समाज को सुरेशजी की जरूरत है. और ऐसे राष्ट्रवादी चिन्तक को हमारी ताकत की जरूरत है.
मेरा व्यक्तिगत आग्रह है कि, सुरेश चिपलूनकर की प्रस्तावित वेबसाईट में मुक्त हस्त से योगदान दीजिये. जिनके पास पे-पाल खाता अथवा क्रेडिट कार्ड नहीं हैं, वे स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के सेविंग खाता क्रमांक 030046820585 (SURESH CHIPLUNKAR)- IFSC Code : SBIN0001309 में भारत के किसी भी कोने से राशि डाल सकते हैं. 

आप अधिक जानकारी के लिए और उनकी धारदार लेखनी का नमूना देखने उनके ब्लॉग पर पधार सकते हैं. आर्थिक योगदान संबधी किसी भी जानकारी के लिए उनसे suresh.chiplunkar @gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं. विश्वाव कीजिये आपका योगदान बेकार नहीं जाएगा. 

19 जनवरी 2011

सेकुलर कोंग्रेस के सात खून माफ़ !

भारत में अगर आप सेकुलर हो तो आपके सात खून माफ़ हैं. आप चाहे तो देश को लूट-खसोट कर स्विस बैंको में काला धन जमा कराओ, गुंडे-मवालियो-जेहादियों को मंत्री बनाकर सरकार बनाओ, देश और प्रदेश को अधोगति में ले जाओ, शासन-प्रशासन में निकम्मेपन की नई मिसाले कायम करो या फिर तंदूर काण्ड या जेसिका लाल काण्ड अंजाम दो. अगर आप सेकुलर हो तो कोई भी आप पर उंगुली नहीं उठाएगा. कोई बुरका दत्त, प्रणव जेम्स राय, प्रभु चावला, राजदीप बेसरदेसाई आपसे सवाल नहीं करेगा. 
आप सेकुलर हैं इसलिए आपको हर काली-करतूत करने की खुली छूट है. आप आदर्श, २जी, कोमन वेल्थ, बोफोर्स, चुरहट, चारा जैसा कोई भी घोटाला कर सकते हैं. क्योंकि आप सेकुलर हैं आपको पूरा हक़ है.
पेश है पिछले 60 साल में कोंग्रेस राज द्वारा किये गए घोटालो की गाथा. और ताज्जुब की बात है कि इतने 'महान' घोटालो के बावजूद विश्व के इस 'महान' लोकतंत्र में आज कोंग्रेस राज कर रही है. जो वोटिंग मशीनों के घोटालो का खुलासा करने वाले को सजा और २जी व पाम तेल घोटाले के सूत्रधार सीवीसी मुखिया थोमस को बचाने के लिए जी जान लगा रही है. जो स्विस बैंको .से पैसा वापस लाने और खुलासा करने के लिए बेशर्मी से मना कर रही है...कोर्ट के आदेश के बावजूद. आइये गौर करते हैं कि अपना 'हाथ' बढ़ाकर कोंग्रेस और उसके साथी सेकुलरो ने देश को कितना लूटा है....

The Encyclopedia Of Corrupt Congress & Its Allies.

Total Scam Money (approx) Since 1992: Rs. 73000000000000 Cr. (73 Lakh Crore)
Hard to digest ?
Just check the below given details
  • 1992 -*Harshad Mehta securities scam Rs 5,000 cr (PV Narsimha Rao)
  • 1994 -Sugar import scam Rs 650 cr
  • 1995 -Preferential allotment scam Rs 5,000 cr  
  • Yugoslav Dinar scam Rs 400 crMeghalaya Forest scam Rs 300 cr
  • 1996: -Fertiliser import scam Rs 1,300 कर +Urea scam Rs 133 cr
         Bihar fodder scam Rs 950 कर (लालू यादव)
  • 1997 -Sukh Ram (Congress Telecom Minister) Telecom Scam Rs 1,500 cr
  • SNC Lavalin power project scam Rs 374 cr
  • Bihar land scandal Rs 400 cr (Lalu Yadav)
  • C.R. Bhansali stock scam Rs 1,200 cr
  • 1998 -Teak plantation swindle Rs 8,000 cr
  • 2001 -UTI scam Rs 4,800 cr
Dinesh Dalmia stock scam Rs 595 cr
Ketan Parekh securities scam Rs 1,250 cr
  • 2002 -Sanjay Agarwal Home Trade scam Rs 600 cr
  • 2003 -Telgi stamp paper scam Rs 172 cr (NCP Leader Chagan Bhubal & Sharad Pawar)
  • 2005 -*IPO-Demat scam Rs 146 cr
Bihar flood relief scam Rs 17 cr (Lalu Yadav)
Scorpene submarine scam Rs 18,978 cr
  • 2006 -*Punjab's City Centre project scam Rs 1,500 cr,
  • Taj Corridor scam Rs 175 cr (Mayavati)
  • 2008 -*Pune billionaire Hassan Ali Khan tax default Rs 50,000 cr
  • The Satyam scam Rs 10,000 cr (Samuel Rajshekhar Reddy)
  • Army ration pilferage scam Rs 5,000 cr
  • The 2-G spectrum swindle Rs 60,000 cr ( D Raja, the UPA Minister)
  • State Bank of Saurashtra scam Rs 95 cr
Illegal monies in Swiss banks, as estimated in 2008 Rs 71,00,000 cr
  • 2009: -*The Jharkhand medical equipment scam Rs 130 cr (Congress Allies Madhu Koda)
  • Rice export scam Rs 2,500 cr
  • Orissa mine scam Rs 7,000 cr
  • Madhu Koda mining scam Rs 4,000 cr"
  • SC refuses to quash PIL against Mayawati in Taj corridor scam
  • Orissa mine scam could be worth more than Rs 14k cr
  • CORRUPTION, MONEY LAUNDERING SCAM, Koda discharged from hospital, arrest imminent

'A Cover-Up Operation':

"It's a scam involving close to Rs 60,000 crores"
Spectrum scam: How govt lost Rs 60,000 crore
 

India's biggest scams 1, Ramalinga Raju, Rs. 50.4 billion (Samuel Rajshekhar Reddy)
India's biggest scams 2, Harshad Mehta, Rs. 40 billion
India's biggest scams 3, Ketan Parekh, Rs. 10 billion
India's biggest scams 4, C R Bhansali, Rs. 12 billion
India's biggest scams 5, Cobbler scam
India's biggest scams 6, IPO Scam
India's biggest scams 7, Dinesh Dalmia, Rs. 5.95 billion
India's biggest scams 8, Abdul Karim Telgi, Rs. 1.71 billion
India's biggest scams 9, Virendra Rastogi, Rs. 430 million
India's biggest scams 10, The UTI Scam, Rs. 320 million
India's biggest scams 11, Uday Goyal, Rs. 2.1 billion
India's biggest scams 12, Sanjay Agarwal, Rs. 6 billion
India's biggest scams 13, Dinesh Singhania, Rs. 1.2 billion
  • Jeep Purchase (1948) :*- Free India's corruption graph begins. V. K. Krishna Menon, then the Indian high commissioner to Britain, bypassed protocol to sign a deal worth Rs 80 lakh with a foreign firm for the purchase of army jeeps. The case was closed in 1955 and soon after Menon joined the Nehru cabinet.
  • Cycle Imports (1951) :-* S.A. Venkataraman, then the secretary, ministry of commerce and industry, was jailed for accepting a bribe in lieu of granting a cycle import quota to a company.
  • MUNDHRA SCANDAL (1957):-* It was the media that first hinted there might be a scam involving the sale of shares to LIC, Feroz Gandhi sources the confidential correspondence between the then Finance Minister T.T.
Krishnamachari and his principal finance secretary, and raised a question in Parliament on the sale of 'fraudulent' shares to LIC by a Calcutta-based Marwari businessman named Haridas Mundhra. 

The then Prime Minister, Jawaharlal Nehru, set up a one-man commission headed by Justice M.C.Chagla to investigate the matter when it becomes evident that there was a prima facie case. Chagla concluded that Mundhra had sold fictitious shares to LIC, thereby defrauding the insurance behemoth to the tune of Rs. 1.25 crore. Mundhra was sentenced to 22 years in prison. The scam also forced the resignation of T.T.Krishnamachari.
  • Teja Loans (1960):-* Shipping magnate Jayant Dharma Teja took loans worth Rs 22 crore to establish the Jayanti Shipping Company. In 1960, the authorities discovered that he was actually siphoning off money to his own account, after which Teja fled the country.
  • Kairon Scam (1963):- *Pratap Singh Kairon became the first Indian chief minister to be accused of abusing his power for his own benefit and that of his sons and relatives. He quit a year later.
  •   Patnaik's Own Goal (1965) :-* Orissa Chief Minister Biju Patnaik was forced to resign after it was discovered that he had favoured his privately-held company Kalinga Tubes in awarding a government contract.
  • Maruti Scandal (1974) :-* Well before the company was set up, former Prime Minister Indira Gandhi's name came up in the first Maruti scandal, where her son Sanjay Gandhi was favoured with a license to make passenger cars.
  •   Solanki Exposé (1992) :- *At the World Economic Forum, Madhavsinh Solanki, then the external affairs minister, slipped a letter to his Swiss counterpart asking their government to stop the probe into the Bofors kickbacks. Solanki resigned when India Today broke the story.
  • Kuo Oil Deal (1976):-* The Indian Oil Corporation signed an Rs 2.2-crore oil contract with a non-existent firm in Hong Kong and a kickback was given. The petroleum and chemicals minister was directed to make the purchase.
  • Antulay Trust (1981) :-* With the exposure of this scandal concerning A.R. Antulay, then the chief minister of Maharashtra, The Indian Express was reborn. Antulay had garnered Rs 30 crore from businesses dependent on state resources like cement and kept the money in a private trust.
  • HDW Commissions (1987) :-* HDW, the German submarine maker, was blacklisted after allegations that commissions worth Rs 20 crore had been paid. In 2005, the case was finally closed, in HDW's favour.
  • Bofors Pay-Off (1987) :-* A Swedish firm was accused of paying Rs 64 crore to Indian bigwigs, including Rajiv Gandhi, then the prime minister, to secure the purchase of the Bofors gun.
  • St Kitts Forgery (1989) :- *An attempt was made to sully V.P. Singh's Mr Clean image by forging documents to allege that he was a beneficiary of his son Ajeya Singh's account in the First Trust Corp. at St Kitts, with a deposit of $21 million.
  • Airbus Scandal (1990) :-* Indian Airlines's (IA) signing of the Rs 2,000-crore deal with Airbus instead of Boeing caused a furore following thecrash of an A-320. New planes were grounded, causing IA a weekly loss of Rs 2.5 crore.
  • Securities Scam (1992) :-* Harshad Mehta manipulated banks to siphon off money and invested the funds in the stock market, leading to a crash.
         The loss: Rs 5,000 crore.
  • Indian Bank Rip-off (1992) :- *Aided by M. Gopalakrishnan, then the chairman of the Indian Bank, borrowers-mostly small corporates and exporters from the south-were lent a total of over Rs 1,300 crore, which they never paid back.
  • Sugar Import (1994) :- *As food minister, Kalpnath Rai presided over the import of sugar at a price higher than that of the market, causing a loss of Rs 650 crore to the exchequer. He resigned following the allegations.
  • MS SHOES SCAM (1994) :- *Anyone who war old enough in 1994 to read will remember the advertisements- tens of them intriguingly headlined: 'Who is Pawan Sachdeva?' For the record, it was the peak of the public issued-led advertising boom and the ads were created by the Delhi branch of Rediffusion. Sachdeva, the promoter of MS Shoes, allegedly used company funds to buy shares (of his own company) and rig prices, prior to a public issue. He is alleged to have colluded with officials in the Securities Exchange Board of India (SEBI) and SBI Caps, which lead-managed the issue, to dupe the public into investing in his Rs. 699-crore public-***-rights issue. Sachdeva was later acquitted 
  • PLANTATION COMPANIES SCAM (1999) :-* It was as innovative a swindle as
any effected in the world. Savvy entrepreneurs convinced gullible investors that given the right irrigation and fertilizer inputs, teak, strawberries, and anything else that could be grown, would grow anywhere in the country. The promoters could afford to collect money from investors and not worry about retribution (or returns, for that matter). For, plantation companies fell under the purview of neither SEBI nor Reserve Bank of India. Indeed, they didn't even come under the scope of the Department decided to change things in 1999, enough investors had been gulled: 653 companies, between them, had raised Rs. 2,563 crore from investors. To date, not many investors
have got their principals back, just another affirmation of the old saying about money not growing on trees.
 
  • Match Fixing (2000) :-* Mohammed Azharuddin, (Now Congress MP)  till then India's cricket captain, was accused of match-fixing. He and Ajay Sharma were banned from playing, while Ajay Jadeja and Manoj Prabhakar were suspended for five years.
  • Stockmarket Scam (2001) :-The mayhem that wiped off over Rs 1,15,000 crore in the markets in March 2001 was masterminded by the Pentafour bull Ketan Parekh. He was arrested in December 2002 and banned from acccessing the capital market for 14 years.
  • 36, Stamp Paper Scam (2003) (Minister of Congress-NCP in Maharashtra involved):- The sheer magnitude of the racket was shocking-it caused a loss of Rs 30,000 crore to the exchequer. Disclosures of the mastermind behind it, Abdul Karim Telgi, implicated top police officers and bureaucrats.
  • 37, Oil-for-Food Scandal (2005) :- K. Natwar Singh (Congress Minister of Foreign Affairs) was unceremoniously dropped from the Cabinet when his name surfaced in the Volcker Report on the Iraq oil-for-food scam.

What India Could Do With Rs 73 Lakh Crore?*

  • Build:* 2.4 crore primary healthcare centres. That’s at least 3 for every village, at a cost of Rs 30 lakh each.
  • Build:* 24.1 lakh Kendriya Vidyalayas at a cost of Rs 3.02 crore each, with two sections from Class VI to XII.
  • Construct:* 14.6 crore low-cost houses assuming a cost of Rs 5 lakh a unit. Set up: 2,703 coal-based power plants of 600 MW each. Each costs Rs 2,700 crore.
  • Supply: *12 lakh CFL bulbs. That’s enough light for each of India’s 6 lakh villages
  • Construct:* 14.6 lakh km of two-lane highways. That’s a road around India’s perimeter 97 times over.
  • Clean up:* 50 major rivers for the next 121 years, at Rs 1,200 crore a river every year.
  • Launch:* 90 NREGA-style schemes, each worth roughly Rs 81,111 crore.
  • Announce: 121 more loan waiver schemes. All of them worth Rs 60,000 crore.
  • Give: *Rs 56,000 to every Indian. Even better, give Rs 1.82 lakh to 40 crore Indians living BPL.
  • Hand out:* 60.8 crore Tata Nanos to 60.8 crore people. Or four times as many laptops.
  • Grow the GDP:* The scam money is 27% more than our GDP of Rs 53 lakh crore."
Greed, graft, politics, bribery, dirty money. Just another day in the life of a nation still rated among the most corrupt in the world. Scan the scams that have grabbed headlines, destroyed reputations and left many people poorer.

13 सितंबर 2010

सलमान ने कहा गलती कर दी?

मुम्बई पर जेहादी हमले पर सलमान खान की टिप्पणी को लेकर सेकुलर मीडिया खूब हल्ला मचा रहा है.


आखिर सलमान के पीछे सेकुलर मीडिया क्यों हाथ धोकर पडा है? क्या इसकी वजह सलमान का मुसलमान होना है? जी बिलकुल नहीं, इसकी असली वजह है सलमान का मुसलमान होकर भी, जेहादी मुसलमान नहीं होना है.

एक हिन्दू माँ और शिया मुस्लिम पिता  के बेटे सलमान खान दूसरे खानों (आमिर/शाहरुख) से ज्यादा सेकुलर और ईमानदार है. लेकिन उनके मन में कपटी जेहादी मानसिकता नहीं है (जो बाकी खान सितारों में कूट-कूट कर भरी हुई है). और यही बात भारत के मुस्लिमो, उनके चरण-आराधक सेकुलर नेताओं और मीडिया को नहीं सुहाती है.

सलमान के घर गणपति लाये जाते है...उनकी एक बहन अर्पिता खान गोद ली हुई है फिर भी हिन्दू है. उनके पिता सलीम खान ने कई बार कट्टर मुस्लिमो को आड़े हाथ लिया है. कुछ साल पहले मुम्बई के इसकों मंदिर ने माहिम दरगाह के बाहर बैठने वाले गरीब मुस्लिमो को हर रोज भोजन देने का प्रस्ताव दिया था. लेकिन मुस्लिम कट्टरपंथियों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया था. कि हिन्दू भगवान के मंदिर से आने वाले भोजन को खाने से बेहतर है भूखा मर जाना. इस मुस्लिम मानसिकता का सलीम खान ने पूरजोर विरोध किया था. वह अपने पूर्ववर्ती जोडीदार जावेद अख्तर की तरह सेकुलरिज्म का छली नकाब ओढ़कर, इस्लाम की गलतिया छिपाकर हिन्दुओ को नहीं कोसते है, बल्कि मुस्लिम कट्टरपंथ की आलोचना करते हैं.

और हमारा सेकुलर गिरोह (मीडिया, नेता, मानवाधिकार) जिस इस्लाम को सिजदा करता है वह कट्टर सुन्नी वहाबी तबका है. जाहिर है इसीलिये मीडिया को शिया सलमान खान से खुन्नस होनी ही है.

दूसरी तरफ गुजरात में मुस्लिम दंगाईयो की पैरवी करने वाले और नरेन्द्र मोदी को गाली देने वाले आमिर खान और पाकिस्तानी खिलाडियों की पैरवी करने वाले और खुद को इस्लाम का दूत बताने वाले, हिन्दू पार्टी शिव सेना की आलोचना करनेवाले शाहरुख खान कट्टर मुस्लिम हैं और सिर्फ अपने धर्म के लोगो की पैरवी करते है. इसलिए वह सेकुलर है. कोंग्रेस और मीडिया के दुलारे हैं.

यही गलती है सलमान की. .. की वह मुसलमान होकर भी कट्टर और अंधभक्त नहीं है, ईमानदारी से बात रखते है. दूसरे खानों की तरह कपट नहीं रखते है. सेकुलर दोगलापन नहीं है. उनकी मानसिकता भी जेहादी नहीं है.

और हमारे मीडिया को तो जेहादी, भारत-विरोधी, हिन्दू विरोधी मुसलमान ही प्यारे है. इसका सबूत आपको फिरोज खान के पाकिस्तान प्रवास वाले प्रकरण से भी मिल जाएगा.

पाकिस्तान में एक कार्यक्रम के दौरान किसी पाकिस्तानी ने भारत के खिलाफ अनाप-शनाप बका था. उस समय वहा फिरोज खान सहित हमारे महान सेकुलर महेश भट्ट और जावेद अख्तर भी थे. लेकिन किसी ने विरोध नहीं किया. सिर्फ फिरोज खान ने उस पाकिस्तानी को खरी-खरी सुना दी कि 'हमारे भारतीय मुसलमानों की चिंता छोड़ो और पाकिस्तानी मुसलमानों की परवाह करो'.

इसके बाद पाकिस्तानी तो छोड़ो, भारतीय मीडिया ने भी फिरोज खान को विलेन बना दिया. और शराबी, नशेड़ी जैसे खिताब दे डाले.

अब आप सोच सकते है कि भारत में सेकुलर पत्रकारिता और नेतागिरी के क्या मायने है.

17 जुलाई 2010

अमरसिंह का क्षत्रीय प्रेम !!

आजकल अमरसिंह की हरकतों को देखकर आपको लगेगा कि, उन्हें अचानक भान हुआ कि वह क्षत्रीय है !!
आखिर सेकुलर अमरसिंह को अचानक क्षत्रीय समाज क्यों याद आ गया??

कितनी अजीब बात है कि जिस शख्स की करतूते हिंदूद्रोही और क्षत्रीयद्रोही  मानसिंह और जयचंद जैसी रही है, वही शख्स अब प्रात: स्मरणीय महाराणा प्रताप की प्रतिमाओं का अनावरण करने का ढोंग कर रहा है. जी हां, भारतीय राजनीति का कोढ़ बन चुके अमरसिंह की बात कर रहा हूँ. मुल्ला मुलायम से तलाकशुदा अमरसिंह अब क्षत्रीय समाज के नाम पर राजनीति की गोटिया फिट करने के जुगाड़ में हैं और हिन्दू समाज के अभिन्न अंग क्षत्रीय समाज को शेष हिन्दुओं के खिलाफ खडा करके जात-पांत में बांटकर राजनीतिक फायदा उठाने के फिराक में हैं.


मजे की बात है कि इसी अमरसिंह ने स्वर्गीय भैरोसिंह को राष्ट्रपति चुनाव में साथ देने का वचन देकर अपनी पीठ दिखाई थी. यही नहीं, अमरसिंह ने कई बार मुस्लिमो के लिए अपनी आवाज उठाई, लेकिन अपने राजनीतिक उत्कर्ष युग में कभी भी क्षत्रीय समाज के हको की बात तो दूर, उनका जिक्र तक नहीं किया.  क्योंकि तब उनका सेकुलरिज्म लांछित होने का भय था...!! अब चूंकि उनका सूरज अवसान कर चुका है, उन्हें क्षत्रीय समाज और उनके योद्धा राणा प्रताप याद आ रहे है. राष्ट्र और राष्ट्रवाद की रक्षा ही क्षात्र धर्म है, लेकिन अमरसिंह की करतूते ठीक इसके विपरीत रही हैं.

यही अमरसिंह जो सेकुलरिज्म का दम भरते हुए हिन्दू समाज (जिसका एक प्रमुख अंग क्षत्रीय है) को कई बार कोस चुके हैं. आज फिर उसी हिन्दू समाज की शरण में आकर क्षत्रीय समाज का दामन पकड़कर अपनी राजनीतिक नैया पार कराने की जुगत कर रहे हैं.

ध्यान रहे वह फिर अपने नीजि फायदे के लिए क्षत्रीय जाती का इस्तेमाल न कर पाए. हिन्दू समाज में विघटन करके चोट न पहुंचाए. २१वी सदी का यह जयचंद अपने मंसूबो में कामयाब न हो पाए. क्योंकि पहली ही सेकुलरवाद की आड़ में लालू-पासवान-मायावती-मुलायम और उनको जनने वाली काली कोख कोंग्रेस जातिवाद के विष बोकर हिन्दू समाज का काफी अहित कर चुके है. अमरसिंह जैसे लोगो का मकसद जाती का इस्तेमाल करके ब्लेकमेल की राजनीति करने के सिवा कुछ नहीं है.

22 अप्रैल 2010

हुसैन: अभिव्यक्ति की आजादी या टैक्स बचाने का जुगाड़?


अपनी विकृत पेंटिंग्स (?) के लिए कुख्यात मकबूल फ़िदा हुसैन को लेकर कोंग्रेस-कम्युनिस्ट सहित तमाम सेकुलर-जमाते मातम मचा रही हैं. गौरतलब है कि भारत के कई न्यायालयों में अपने खिलाफ चल रहे केसों के डर से पिछले दिनों हुसैन कट्टर इस्लामिक देश क़तर में जा बसा.  गौर करने लायक बात ये है कि हुसैन ने भारत की कोर्ट में केस का सामना करने की बजाय यहाँ से भाग जाने का शोर्ट कट क्यों चुना?
इसके पीछे अभिव्यक्ति की आजादी जैसा कोई मामला नहीं बल्कि अपनी पेंटिंग्स से करोडो की कमाई करनेवाले हुसैन को टैक्स देना गवारा नहीं है. और इसी के चलते देश छोड़कर क़तर में जा बसा है. इस आर्थिक दिक्कत का जिक्र एक इंटरव्यू में खुद हुसैन ने किया था. पेश है इस सम्बन्ध अंगरेजी अखबार डीएनए में छापा  एक लेख ..

Husain & Khushboo

R Vaidyanathan
Monday, April 12, 2010 23:23 IST
Two rebels without a pause and two different resolves and results. That is the saga of MF Husain and actress Khushboo. 
When Husain asked for and got the citizenship of Qatar— an honorary citizenship is only conferred — there was furore among left liberals. The usual suspects on TV studios were aghast and upset.
There was no discussion on the “rule of law” or the “law taking its own course”.
The number of cases against him was quoted as 900. Our left liberals are mathematically challenged since most of them come from the social science stream.
People who think that Picasso is a new type of Italian dish and Munch is a special potato wafer were aghast at the damage done to the great Indian artist. They screamed at the TV cameras, crying that the shamed India must listen to them!
First the facts. The controversy pertaining to his paintings of the seventies became prominent in 1996 and he went into voluntary exile in 2006.
From 2006 he has been a non-resident Indian and in 2010 he has decided to surrender his Indian passport to become a citizen of Qatar which is well known for few major supermarkets and a couple of five-star hotels and desert sand.
There were seven cases in all against him, and of them four were quashed by the Delhi high court in May, 2008 (Husain did not appear in person) by justice Sanjay Kishen Kaul.
The Supreme Court upheld the same in September, 2008. The court also rejected the complainant’s argument to summon Husain, who then hailed the verdict as a great gift.
He said, “The Supreme Court has shown that it is supreme — what a great gift”.
The remaining three cases are pending in the Patiala House court. And recently the Supreme Court rejected a petition to direct the government to close these cases, since they were private cases and hence did not have the powers to ask the government to close them.
In the last hundred years I have not heard of any artist of any hue in India being put in jail or beheaded for any of his actions.
Then what could be his reason to leave India? He has been tax assessed as an NRI for the last four years — hopefully our tax department is doing its task.
He himself has mentioned in his interviews that “commercial considerations” and “tax issues” did play a role in his decisions.
It is not a top secret that major art investors are also investors through tax havens. The financial crunch in 2008 hit the art market also and it became important to sell abroad even though much of Husain’s work is in India.
There is also another aspect to it: Was there a track two dialogue with our finance ministry regarding his taxation?
This question has not been asked to him or to our finance minister. Husain is a multi-millionaire. At his age he needs to partition his wealth among his extended family and protect his commercial interests by increasing the price of his products. But he ends up as a fugitive from law. By taking foreign citizenship he cannot be excluded from our legal processes since that will be a dangerous trend.
Let us turn to Khushboo, nee Naggarth Khan.
The Tamil actress gave an interview in 2005 mentioning that men cannot expect their brides to be virgins and also suggested that girls should take protective measures for pre-marital sex.
Her views upset many Tamil groups, including two political parties — Pattali Makkal Katchi (PMK) and Viduthalai Chiruthaigal Katchi (VCK) — and there were agitations, and even dharnas, before her house.
Soon, the PMK’s legal and women’s wing functionaries began to file criminal complaints against Khushboo in their respective area magistrate courts, and these were backed by the VCK.
As many as 22 criminal complaints were filed, on the ground that the actor sought to ‘defame’ Tamil womanhood and chastity.
She did not get support from her colleagues, except for a few like Suhasini Mani Ratnam.
No Qatar for her. Just grit and tenacity.
Having to respond to summons from 22 courts in different parts of Tamil Nadu is sufficient to drive anyone nuts.
She quickly moved the Madras high court urging that all the criminal complaints against her be quashed. The high court rejected her plea but directed that all the 22 complaints against Khushboo be transferred to the chief metropolitan magistrate in Chennai to facilitate speedy disposal.
In 2008, Khushboo appealed against the high court’s order in the Supreme Court, where the case is now on.
Initially, at the time of the admission of her appeal the Supreme Court had frowned on her interview (January, 2010) but later (March, 2010) made some off-the-cuff observations on pre-marital sex being acceptable.
Husain could easily have followed Khushboo in facing the cases. The fact that he did not do so means there is more to it than meets the eye.
(Views expressed are personal)
http://www.dnaindia.com/opinion/main-article_husain-and-khushboo_1370660